क्यों की हमने प्यार मोहब्बत ग़र ये होना था,
पल दो पल की खुशी का सब़ब़ आख़िर रोना था.
कभी न करता महंगा सौदा ग़र मुझको होती ख़बर,
अदने से इक आस़ की ख़ातिर इतना खोना था.
दिल का रिश्ता करने से पहले कैसे भूल गया,
उसके पहले भी इस दिल को कितनों का होना था.
अपनों को भी किया पराया रहकर इस मुगालते में,
रुंह-औ-जां उसकी मेरी है अपना ही जो न था.
कैसे-कैसे ख़्वाब बुने थे ख़्वाबों ही ख़्वाबों में,
अब ये समझा ख़्वाबों को क्या ख़ाक न होना था.
प्यार की ख़ातिर कभी न जगना कर लो ये तजरूबा,
तौहीन-ए-बरोज से बेहतर हर दम सोना था.
खेला जब तक चाहा उसने दिल से तेरे ‘आशीष’,
तोड़ ही डाला आख़िर उसने दिल जो खिलौना था.
Bahut khoobsurat
शुक्रिया आपकी हौसला आफज़ाई के लिए परवीन जी
Bahut khoobsoorat bhaav…par aap Isko dobara dekhein… teesre…paanchvein…Makta ke doosre misre ko….aakhir tod hi daala dil jisko usne samjha khilona tha aise hona chaahyea kya….५th mein…khaak na ho a tha jacha nahin…khaak hi hona tha…aisa sher ki hisaab se hona chaahyea kya….or teesre mein aap kya kahna chaahte dil ko kitni ka hona tha mein…spasht nahin hua Mujhe…gustaakhi maaf…
आपकी बेबाक प्रतिक्रिया हेतु आपका बेहद शुक्रिया सम्मानीय बब्बू जी,
दरअसल लेखक और पाठक के मनोभाव में स्वाभाविक भिन्नता की वजह से ये मतान्तर उत्पन्न होता है और हाँ जो तीसरें शेर् में मैंने कहना चाहा है, वो यह की हमारी ज़िन्दगी पर किसी प्रेमिका के पहले हमारे हमारे माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-नातेदार आदि का भी अधिकार होता है. हम प्रेम में अंधे होकर अक्सर इन सभी कीमती रिश्तों को अनदेखा कर देते हैं.
भविष्य की रचनाओं में भी आपका यूँ ही मार्गदर्शन मिलता रहे,
इन्हीं भावनाओं के साथ…
‘तनहा’
आपकी बेबाक प्रतिक्रिया हेतु आपका बेहद शुक्रिया सम्मानीय बब्बू जी,
दरअसल लेखक और पाठक के मनोभाव में स्वाभाविक भिन्नता की वजह से ये मतान्तर उत्पन्न होता है और हाँ जो तीसरें शेर् में मैंने कहना चाहा है, वो यह की हमारी ज़िन्दगी पर किसी प्रेमिका के पहले हमारे हमारे माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-नातेदार आदि का भी अधिकार होता है. हम प्रेम में अंधे होकर अक्सर इन सभी कीमती रिश्तों को अनदेखा कर देते हैं.
भविष्य की रचनाओं में भी आपका यूँ ही मार्गदर्शन मिलता रहे,
इन्हीं भावनाओं के साथ…
‘तनहा’
सुंदर रचना तनहा जी ।
बहुत-बहुत आभार काजल जी
Beautifully written…………
Thanks a lot Madhukar Ji
बहुत खूबसुरत रचना़़़़़़़़ अति सुन्दर ।।
अपनों को भी किया पराया रहकर इस मुगालते में,
रुंह-औ-जां उसकी मेरी है अपना ही जो न था.
सभी पंक्तिया लाजबाब पर हाँ मुझे इन दो पन्क्तियो ने ज्यादा रुख अपनी औत किया।