वो जो शायर था
बड़ा ख़ामोश सा था
अक्सर बहकी-बहकी
बातें करता था
ख़्वाब थे उसके
चाँद सितारों के लेकिन
वो अक्सर जमीन की
बातें करता था
मैंने बहुत से वक्त
गुजारे हैं संग में
वो अक्सर गमगीन सी
बातें करता था
वो जो शायर था
बड़ा ख़ामोश सा था
अक्सर बहकी-बहकी
बातें करता था
समंदर से परहेज भी उसने
सख़्त रखे थे
पर क्यूँ वो नमकीन सी
बातें करता था
पहली बारिश सा
बड़ा अल्हड़ सा था
सौंधी-सौंधी महकी सी
बातें करता था
मनमौजी सा
उड़ा-उड़ा सा रहता था
परिन्दों जैसी चहकी सी
बातें करता था
वो जो शायर था
बड़ा ख़ामोश सा था
अक्सर बहकी-बहकी
बातें करता था
बहुत खूब लिखा है आपने…
बेहद शुक्रिया आपका रिंकी जी
Bahut hi badhiya…..
शुक्रिया बब्बू जी
कही वो शायर आप तो नही तन्हा जी । बहुत खूब ।
हाँ शायद आप सहीं कह रहीं हैं काजल जी, कोशिश तो मैंने खुद पर लिखने की ही की है.
Very nice write
Thanks Madhukar Ji
मनोभावो को शब्द माला मे गूथने का खूबसुरत कार्य ………अति सु़ंदर ।।
आप ने बहुत ही गहराई से अपने मनोभाव को लिखा है । बधाई देता हूँ!
bahut hi behtarian sir…………………….