ऐ चमन के माली अपने गुल को तू ही सँभाल
जब मुरझा रहा था ये मैंने पानी दिया था डाल
इंसानियत के नाते ये कोशिश जो मै ना करता
बिखरा हुआ फूल फ़िर मिट्टी में जा कर गिरता
बुरे दौर में भी कभी अपनी डाली से ये ना टूटा
उसके सहारे देखो तो ये लगता हैं बहुत अनूठा
फूल के कष्टों को जो तुम भी ना समझ पाओगे
देर तक कैसे फ़िर तुम उसकी सोहबत पाओगे
शिशिर मधुकर
शिशिर सरसर फूलो के माध्यम से मानव पीड़ा को को दर्शाया आपने! बेहतरीन भावों के साथ!
So nice of you Surendra for your comment
अति सुदंर ………….।।
Thanks for your comment Nivatiya ji
इंसानियत के नाते ये कोशिश जो मै ना करता
बिखरा हुआ फूल फ़िर मिट्टी में जा कर गिरता
बहुत सुन्दर कविता है
Thank you Rinki for your lovely comment.
शिशिर जी हर कोई इनके दर्द को नही समझ पाता ।सुंदर पंक्तियो मे जो समझाया आपने ।
So nice of you Kajal ji for reading and commenting.
अत्यंत सुन्दर और सराहनीय।
सराहना के लिए हार्दिक आभार अरुण जी
वाह क्या कमाल है…..जब बहुत ज़रुरत रही हाथ बढ़ा कर मदद की जो क इंसान का फ़र्ज़ है …..पर “माली” अपना फ़र्ज़ न भूल जाये यह बहुत ही ज़रूरी है….क्योंकि जिसने उसको पैदा किया वह अपने कर्तव्य से किसे मुह मोड़ सकता है…..वो आज नहीं करेगा तो कल उसको क्यों कोई पूछेगा……लाजवाब……?☺
तहे दिल से शुक्रिया बब्बू जी
परोपकार जैसे मानवीय गुण पर प्रकाश डालती सुन्दर सी रचना !
हार्दिक आभार मीना जी ……….
बहुत खूब ……………………………… मधुकर जी !!
हार्दिक आभार सर्वजीत ………
bahut sunder shishir ji……………….
तहे दिल से शुक्रिया मनिंदर
हर लिया आपने दिल का शूल
आप की रचना को कैसे जाऊँ भूल
दिल जीत लिया आपका ये फूल
आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार डॉ. सिंह