जाने क्यों ?
कलम पकड़ हाथ,
चल नहीं रहे,
कागज को कर दे तृप्त,
वो लफ्ज़ मिल नहीं रहे,
देख हालात-ऐ-जिंदगी,
रूह खुश हो जाये,
बहुत ढूंढे,
ऐसे पल मिल नहीं रहे,
ना इश्क आग का दरिया,
ना कच्चा घड़ा ले,
कोई उसमे डूब रहा,
ना कोई मिर्ज़ा बन,
तीरो का शिकार हो रहा,
ना कुदरत करती,
दिख रही श्रृंगार,
ना पेड़ो की छाव,
ना जल की,
कल कल करती आवाज़,
ना बुझ रही धरती की प्यास,
हर तरफ नफ़रतो का,
धुंआ धुंआ सा,
दिल में हर किसी के खार,
सड़ने को मजबूर,
दीवारों में बंद अनाज,
कुपोषण, भुखमरी पर,
बड़ी बड़ी बहस हो रही आज,
ना रहा रिश्तो में प्यार,
ना छोटे बड़े का लिहाज़,
कोई कुछ पाने में,
कोई कुछ दिखाने में,
बन रहा हर कोई एक दूसरे का खास,
सच पढ़ेगा कौन ?, सच सुनेगा कौन ?,
आत्म चिंतन दर्पण में खुद को देखेगा कौन ?,
ऐ “मनी” हमाम में सब नंगे,
सब को पता हर किसी की फितरत का,
फिर एक दूसरे से शर्म करेगा कौन ?
जाने क्यों ?………….
बहुत सुंदर मनी जी ।
thank you raj kumar ji…….
Nice composition with a lot of grievances……
मणि जी जो मुद्दे उठाये है वह निश्चित रूप से सोचनीय है
thank you surendr ji……………
बहुत खूबसुरत विचारनीय प्रसंग को छुआ हेै जो यथार्थ को उजागर करता है …….अति सुंदर मनी ।।
thank you nivatiya ji…………
बेहद सुन्दर आंतरिक द्वन्द समेटे रचना
thank you shihsir ji…….
बहुत खुबसुरती से आज के समाज की कमजोरियों को उजागर करती है आपकी रचना.
thank you rinki ji……
Waah kya baat hai….laajwaab….
thank you c m sharma ji……
बेहतरीन………….,
thank you meena ji……
बहुत खूब ……………………………… मनी !!
thank you sarvajeet sir…….