किसी गुल सा मेरे गुलशन में भी खिलते रहिए…
कभी दो चार दिन में हमसे भी मिलते रहिए…
तेरि अटखेलियों का मैं भी इक दिवाना हूँ…
मैं किनारा हूँ…लहरों सा मचलते रहिए…
मेरी नजरों को तेरे दीद की तमन्ना है…
यूँ ही हर रोज सुबहो शाम निकलते रहिए…
मैं तुझे दूंगा सहारा ये मेरा वादा है…
मेरे आँगन में हर इक रोज फिसलते रहिए..
– सोनित
वाह क्या अंदाज़ है सहारा दे कर रिश्तों को बनाने का अंदाज़……..बहुत ही खूबसूरत…..?
bahut badiya sonit ji…….
मेरे आगन में हर एक रोज फिसलते रहिये.. .. .
मेहमान बुलाने का यह अंदाज पसंद आया!
पूरी रचना में अपने यार प्यार मोहब्बत के लिए जो शब्दों को सहेजा है वह दिल को छूती है!
बहुत खूबसुरत सोनित ……बेहतरीन भावो से रचना को संजोया है।
बहुत सुन्दर सोनित…………….
मैं तुझे दूंगा सहारा ये मेरा वादा है…
उम्दा
अतीव सुंदर और सहज भी
वाह!
Loveable sonit ji…………..
अच्छी रचना सोनित जी ।
बहुत खूब ……………………………… सोनित !!
Very nice……….,
व्यस्तता के कारण देर से उपस्थित होने के पर माफी चाहूंगा.आप सभी की प्रतिक्रियाएं देख कर दिल गदगद हो गया. ऐसे ही मेरा उत्साह वर्धन करते रहें, हर कमी बीशी पर अपनी सलाह देते रहें. बहुत बहुत आभार.