कितना ये आदमी
मतभेद करता
जिसमें खाता
उसी में छेद करता.
नभ में उड़ता
जमी पर पाँव ही नहीँ
कहीं ईमान दिखता
ऐसा कोई ठाव ही नहीं
डाह इतना कि खुद अपनो से
परहेज़ करता
कितना ये आदमी
मतभेद करता.
अब तो मोरौवत की
महक आती भी नहीं
इंशान इतना बदला की
उसकी भूख जाती ही नहीं
व्यर्थ अपने बदन का
स्वेद करता
कितना ये आदमी
मतभेद करता.
इतना एकाकी हुआ कि
घर से निकलता भी नहीं
छाँव में बैठकर दो घड़ी
बात करता भी नहीं
ठेस लग जाये किसी को
तो नहीं खेद करता
कितना ये आदमी
मतभेद करता
जिसमें खाता
उसी में छेद करता !!
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डॉ सी. एल. सिंह
लाजवाब…………..?
saty vachan……………..bahut badiya sir……..
आज की स्वार्थी जनमानस की सत्य कथा……
उम्दा रचना!
सत्य परक रचना ……अति सुंदर.।।
Facts very well described.
यथार्थ भावों का शिल्प एक कुशल शिल्पी द्वारा
बहुत खूब डाक्टर साहब
बहुत बढ़िया ……………………………… !!