जिन्दगी अधूरी है
**************
बाप देखो बुढ़े हैं
माँ भी देखो बूढ़ी है
सेवा सत्कार बिना
जिंदगी अधूरी है ।
वक्त की दुहाई देता
कारवां ये जा रहा
जिसको देखो अपनी धुन में
मस्त हँसता गा रहा
धूमिल आँखों की गरिमा से
क्यों बढ़ती जाती दूरी है
बाप देखो बुढ़े हैं …….
वह निराला आला
मन वाला मतवाला
मुश्किल में जीवन डाला
करता उनको नित ठाला
ग़म के आँसू पीते तात
ये कैसी मजबूरी है
बाप देखो बुढ़े हैं ……
चिपकी चमड़ी धसती आँखे
रुक रुक कर चलती हैं सांसे
पीठ पेट सब एक हो गया
उनकी इच्छा क्या पूरी है
बाप देखो बुढ़े हैं …….
गर बिलखता रहा
रूह माँ बाप का
अंजाम कैसे भुगतेगा
हर श्राप का
नासमझ हो जा सजग
इसमे भलाई तेरी है
बाप देखो बुढ़े हैं
माँ भी देखो बूढ़ी है
सेवा सत्कार बिना
जिंदगी अधूरी है !!
!
!
डॉ सी एल सिंह
भावों की वेदना जो बुढ़ापे का चित्रण करती है दिल को छु गयी…….बहुत मार्मिक
बुढ़ापे का दृश्य भी झलक रहा है आपकी पन्क्तियो में
चिपकी चमड़ी धसती आँखे
सांसे रुक रुक कर चलती हैं
क्या जीवंत रूप में प्रस्तुत किया बुढ़ापे को
तथा साथ ही इन्सान की खुदगर्जी की बताई की दुहाई देता
कारवां ये जा रहा
जिसको देखो अपनी धुन में
मस्त हँसता गा रहा
बहुत ही बेहतरीन सर जी!
बूढे माँ बाप के प्रति अपने कर्तव्य का भान कराती खुबसुरत रचना ।।
भारतीय परम्पराओं से विमुख होने से उपजी अपने वरिष्ठों की सम्याओं को उकेरती रचना
बुढापे के दर्द को बया करती सुंदर रचना ।
बहुत बढ़िया ……………………………… !!