ख़ामोशी भी एक तरह की सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका
मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
तुम मुझसे दूर जाने के बहाने
को समझा नहीं सके
मैं तेरे सही बातो को भी न
समझ सका
हम थे तो आमने –सामने
लेकिन ख़ामोशी की एक खाई सी
हमारे बीच पट्टी थी
एक सवाल
कभी जो कानो में शौर करता
क्या प्यार नहीं है?
और हम दोनों के दरमियाँ
फिर एक लंबी ख़ामोशी
हमेशा के लिए छा गई
रिंकी राउत
rinki ji pehli line phir se dekhe ek baar phir……
बहुत धन्यवाद मणि…….
Bahut khoob……
बब्बू जी धन्यवाद और आभार
रिंकी जी कुछ टाइपिंग मिस्टेक्स लगती हैं सुधार लेंगी तो भाव ज्यादा स्पष्ट होंगे.
निम्न दोनों ही लाइने पुरुष को इंगित करती हैं….
तुम मुझसे दूर जाने के बहाने
को समझा नहीं सके
मैं तेरे सही बातो को भी न
समझ सका
इंग्लिश से हिंदी में करने में टाइपिंग मिस्टेक्स होते ही हैं आप copy paste भी कर सकती हैं.
हमारे बीच पट्टी थी (शायद पड़ी शब्द होना चाहिए)
कभी जो कानो में शौर करता (शायद शोर शब्द होना चाहिए)
और हम दोनों के दरमियाँ (शायद दरम्यां शब्द होना चाहिए)
विजय जी, बहुत शुक्रिया आपके सुझाव को ध्यान में रखते हुए, हिंदी की टाइपिंग अशुद्धि को नहीं दोहराने की कोशिश करुँगी
sundar bhaav Rinki ji…………..
धन्यवाद सोनित…………..
बहुत खूबसूरत भाव रिंकी……….विजय द्वारा इंगित सुझाव पर अमल करे !
बहुत-बहुत धन्यवाद निवातियाँ जी
रिंकी पूरी रचना जीवंतता से भरी है
आपकी टिप्पणी भी जीवंतता से भरी है……..धन्यवाद शिशिर जी
अतीव सुंदर बेहतरीन ….
बहुत -बहुत धन्यवाद छोटे लाल जी
बहुत खुबसुरत रचना लिखी है रिंकी जी। भाव गजब के है
सुरेन्द्र जी, रचना पढने के लिए आभार