कैसा मुकाम है जिंदगी का,
तन्हाई मिटा न सकी शौहरत,
मुस्कराहट, अपनों का प्यार,
सकून खरीद ना सकी दौलत,
कागजो का ढेर, हस रही, मेरे,
घर की दीवारे बन कब्रस्तान,
तड़प रही रूह दर्द से,
धीरे धीरे टूट रहा अभिमान,
पलट दू कुछ बीती यादो के पन्ने,
वक्त देता नहीं मुझे अनुमोदन,
ना नज़रो में चमक, ना झेल,
सकता चाहतो की सरगर्मी तन,
सब कुछ जानकर भी, क्यों ?,
अनजान बन बैठा मेरा मन,
प्रतीत हो रहा जैसे घोट रहा,
दम ऐ “मनी” मेरा कमाया धन,
बेहतरीन रचना मनी जी l
thanks rajeev ji……..
Nice……….,
thanks meena ji
वाहहह अतीव सुन्दर मनी जी
thanks abhishek ji
सुंदर रचना मनी जी ।
thanks kajal ji……
ख़ासकर जीवन का अंत काल धन हो अथवा न हो दोनों ही कारणों से प्रभावित होता है. सुंदर भावों से युक्त रचना……………….
thanks vijay ji………
लाजवाब…….बेहतरीन……..
thanks c m sharma ji…….
BEAUTIFUL…………………….!!
thank you nivatiya sir…………
बेहद सुन्दर रचना ……………..
तहे दिल आभार शिशिर जी आपका
बहुत ही बढ़िया ………………………………. मनी !!
तहे दिल आभार सर्वजीत जी आपका
सुंदर रचना मनी जी ।
धन्यवाद राज कुमार जी
बेहतरीन रचना मनी जी………… भावो में खोकर लिखते है आप!
तहे दिल आभार सुरेन्द्र जी आपका इस उत्साहवर्धन के लिए