पर्यावरण दिवस पर विशेष
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मरुस्थल हँस रहा हरियाली पर
कौवे की नज़र है हर डाली पर
एक अदना सा तरु कोंपलो
में सजधज कर
बाग रोशन करे कलियों के साथ हिलमिल कर
मुकुल मकरन्द छलकता अधर की प्याली पर
मरुस्थल हँस रहा …..
स्याह बादल को गुमा हो रहा
नियत नेकी ईमान खो रहा
इल्जाम पर इल्जाम
बागवा के माली पर
मरुस्थल हँस रहा …..
कनखी कुदरत ने सवारा कैसे
झुलसती लपटों के बीच उतारा कैसे
मनुजता तड़प उठी कुंज की बदहाली पर
मरुस्थल हँस रहा …
पाषाण की छाती को चीर कर उगने वाला
पताल भेद दरख्तों से रस पीने वाला
भरोसा कर नहीँ सका मानव मवाली पर
मरुस्थल हँस रहा हरियाली पर
कौवे की नज़र है हर डाली पर
!!
डॉ सी एल सिंह
अच्छी रचना है सर आपकी
हरियाली और पर्यायवरण को लेकर लिखी गयी अत्यंत ही खुबसूरत रचना!
behad khubsoorat sir……………….
खूबसूरत रचना साहब l
वाहहह अतीव सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत………..
पर्यावरण के प्रसंग पर मरुस्थल और हरयाली दोनों पहलुओ के बड़ी खूबसूरती से पेश किया है अति सुन्दर !!
bahut sundar…………
सुन्दर रचना. पर्यावरण की महत्ता को दर्शाती है.