शांति की खातिर हम कब से अत्याचार सह रहे थे
किसी से कुछ ना कह कर बस चुपचाप रह रहे थे
शायद वो सब इसको हमारी कमजोरी समझते थे
तभी तो बिना बात हम से सारे बेईमान उलझते थे
अत्याचारियों ने आतंकी सीमाओं को जो तोड़ा हैं
प्रतिघात को ही निज रक्षा का उपाय एक छोडा हैं
अब हमने तय किया हैं पूरी शक्ति से हम भी लड़ेंगे
कुरुक्षेत्र के इस महाभारत में मगर पीछे नहीँ हटेंगे.
शिशिर मधुकर
बेहतरीन दमदार रचना …
धन्यवाद डॉ. सिंह ………
bahut hi behtarin…………
धन्यवाद मनिंदर …………………
बहुत ओजपूर्ण….सौफीसदि सत्य………सहने की भी एक सीमा होती है……
हार्दिक आभार बब्बू जी
शब्दो मे सच्चाई बया है ।
हार्दिक आभार काजल जी
आतातयियो से उनकी ही भाषा में बात करना होंगा। उन्हें प्यार की भाषा समझ में नहीं आती जैसी दुर्योधन को नहीं आई थी।
अच्छी रचना शिशिर सर!
धन्यवाद सुरेंद्र ………………
शिशिर सर, कल मैंने एक रचना सावन लिखी है जिस पर आपका आशीर्वाद चाहता हूँ। अगर आप अवलोकन कर मेरी रचना की कमिओं को बताते तो मै अति आभारी होता।
सुंदर भावों से युक्त रचना………………
शुक्रिया विजय …………………….
शिशिर साहब सच कहा है आपने दूसरे हमारी चुप्पी हमारी कमजोरी समझते है और ये उनकी बहुत बड़ी भूल है ,रचना के माध्यम से आपने उन लोगो पर तीखी टिपण्णी की है बहुत खूब l
Thank you so very much Rajiv ji
बेहतरीन रचना शिशिर जी!
So nice of you Meena ji
वाहहह अतीव सुन्दर शिशिर जी
Thanks a lot Abhishek………
very nice sir ji
Thanks Santosh………..
तारीफ़ के काबिल रचना मधुकर जी।
बहुत अच्छी लगी।
So nice of you Arun ji for your appreciation
बहुत सुन्दर रचना है शिशिर जी
Thank you very much Rinki
बहुत खूबसुरत शिशिर जी ………यह रचना बडी देरी से पकड मे आयी ।
Thanks for your affection Nivatiya ji