ना लिखा कुछ ना कहा
पलक थामें निरखते
बस ज़िन्दगी जीता रहा
ना लिखा कुछ….
हाशिये पे रख हकीकत
बेखबर बेज़ार बन,
उठ रहा नित बन धुंआ सा
राह की नीयत विषम,
कुछ कहा कुछ ना कहा,
जो भी कहा बस नज़र से,
दर्द के हाले सजाये,
बेवजह पीता रहा..
ना लिखा कुछ ना कहा..
था मगर अफ़सोस,
साँसे घट रही थी ज़िन्दगी|
झाँकती दीवार से ,
मुश्का रही थी बेबसी|
हास का उपवास निर्जल,
द्वन्द घिरते जलद से।
हरीतिमा हरते हरषते,
नेह से रीता रहा|
ना लिखा कुछ ना कहा….
रात बीती कालिमा ,
था चन्द्र लोपित धुंध से|
छँट चली वो हठित बदली,
स्वाति की एक बूँद से|
मन फिरे चातक बना सा,
क्या प्रश्न करता चन्द्र से|
भाव की गुदड़ी जुटाए,
खोलता सीता रहा।
ना लिखा कुछ ना कहा,
पलक थामे निरखते बस
ज़िन्दगी जीता रहा।
ना लिखा कुछ……
-‘अरुण’
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जो भी लिखा क्या खूब लिखा———————– बहुत ही बढ़िया ……………………………..अरुण जी !!
Arunji….Bahut der baad aapki rachna Padhna ko mili…or kya apne jaane pahchaane behtareen alfaazon ki kalaakaari ki hai…bebasi…bechaargi…chaahat ki….welcome back….
रचना पढ़ने और आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सर!
कुछ व्यक्तिगत कारणों से आप सब से विरत रहा। बस न लिख पाने का गम और उसी को लिखने की ललक से बंधकर ऐसा हुआ।
पुनश्च धन्यवाद!
धन्यवाद सर!
कुछ दिनों से कुछ न लिख पाने का दर्द था। आपकी रचनाओं पर प्रतिक्रियां दे पाने के लिए क्षमा!
….पर प्रतिक्रिया न दे पाने के लिए क्षमा!
Arun ji welcome back! आपकी रचना में वेदना भी है और विवशता भी। बेहतरीन शब्दों का तन बना भी। स्वागत करता हूँ ऐसी रचना का दिल से!
धन्यवाद सर जी!
कुछ व्यक्तिगत कारणों से आप सब और इस मंच से दूर रहा। शायद खुद से भी।
अनेको रत्नजड़ित रचनाओं को न जी सका। प्रतिक्रिया भी न दे सका।
आप सब से क्षमा!
बेहतरीन रचना अरुण की. आनंद आ गया
आपको धन्यवाद सर!
उत्साहवर्धन करने के लिए आभार!
bahut hi behtarin rachna arun ji…………………..sach kahu dil se apki pakad bahut hai hindi ke lafzo par….bahut khub likhte hai aap……..aage bhi likhte rahe aap se bahut kuch sikhne ko milta hai……..
अरे मनी जी आप तो कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर बैठे। मैं अपनी काबिलियत जानता हूँ।
फिर भी आपको धन्यवाद मित्र!
सुस्वागतम………………लम्बे अंतराल के बाद, एक सुंदर रचना के साथ आपका स्वागत है.
धन्यवाद विजय जी!