बात कुछ भी हो
पहलू दो आम होते है
एक पर बसती है बन्दगी
दूजे पे कत्ले आम होते है
उन्माद है, शिक्षा है
जूनून है ,नशा है
धर्म कोई भी हो
सभी का फलसफा है
चांदनी इन रातों की
चमक बड़ी निराली है
मुल्क कोई भी हो
खड्डे
में गिराने वाली है
भड़काकर भीड़ को
कायर सा छिप जाते है
सोते है जो मखमल पर
विदेशों में बच्चे पढ़ाते है
काट के रख दूंगा
इन सापों की सीडी को
बचा लूँगा किसी तरह
अपनी मासूम पीढ़ी को
bacha loonga
Bahut teekha kataaksh….Waah….
शानदार रचना राकेश जी