सत्य बनाम असत्य
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जो नज़र आता है,
ज़रूरी नहीं कि वह सत्य हो
और जो नज़र नहीं आता है
ज़रूरी नहीं कि वह असत्य हो !
जो नज़र आता है या
जो नज़र नहीं आता है, वह
सत्य हो सकता है,
असत्य हो सकता है,
अधूरा सत्य हो सकता है
अधूरा असत्य हो सकता है !
सत्य या असत्य का
तत्त्वानुसंधान करते समय
हमारी अपूर्ण, अदक्ष, अप्रौढ़,
दोषपूर्ण एवं अनुभव—शून्य नज़र
धोखा खाने में पूर्णतया सक्षम है
सत्य या असत्य के अर्थ
अलग अलग नज़र से देखने पर
अमूमन बदल भी जाया करते हैं
आप यह मानते ही होंगे कि
सब कुछ संभव है या
कुछ भी असंभव नहीं
तो यह भी मुमकिन हो सकता है कि
जो नज़र आता है या
जो नज़र नहीं आता है, वह
न सत्य हो और न असत्य हो
इन दोनों से दूर
वह कुछ और ही हो
जो हमारी संकुचित दृष्टि
और अल्पज्ञान के कारण
हमारी नज़र से कहीं दूर और
समझबूझ से बिल्कुल परे हो ǃ!
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— गुमनाम कवि (हिसार)
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तर्क संगत बात कही आपने ……बहुत अच्छे ।।
हार्दिक आभार संग नमन ǃ
Hahahaha……kya baat hai….bahut khoob…
हार्दिक आभार संग नमन ǃ
अति उत्तम. परमसत्य के अतिरिक्त तो सब सापेक्ष है.
हार्दिक आभार संग सादर नमन ǃ