भक्ति की शक्ति
****************
मेरे साथ
प्रभु ने खेला
क्रिकेट का खेल
अनंत विशाल स्टेडियम में
मध्यस्थ आकाशगंगा को
बना दिया गया पिच
और अनंत ब्रह्मांड की
काल्पनिक सीमा को
मान लिया गया बाउंड्री
खेल में
बल्लेबाजी पहले करने का
मौका मुझे दिया प्रभु ने
और गेंद अपने हाथ में लेकर
पहली गेंद फेंकी प्रभु ने
तीव्रतम गति से
मन में बसे
और आँखों के सामने
गेंद फेंक रहे प्रभु को
भक्तिभाव सहित
बल्ला उठाकर
नमन करते हुए
बिना किसी डर के
क्रीज से बाहर निकलकर
बिल्कुल सीधे बल्ले से
आसमान में उछाल कर
खेल दिया मैंने
बिल्कुल सीधा शॉट
प्रभु के ठीक ऊपर सेǃ
जितनी तेज थी गेंद,
उतना ही तेज शॉटǃ
विराट रूप धरकर भी
प्रभु पकड़ न पाए गेंद
और गेंद जाकर गिरी,
स्टेडियम से बाहर
प्रभु गेंद को
सकल सृष्टि में
कहीं भी ढूँढ़ नहीं पाए
इसलिए,
खेल हो गया खत्म
और अंततः
जब मैं पहुँचा शून्य में
पूर्ण शून्यमय हुई
गेंद मुझे वहाँ मिली ǃ
****************
-गुमनाम कवि(हिसार)
****************
मुक्ति के मार्ग का बड़ा सही चित्रण
हार्दिक आभार संग सादर नमन ǃ
आपने भक्ति की शक्ति इस रचना का नाम क्यों दिया जबकि आपकी रचना जीवन के बंधन से मुक्ति की कहानी कहती है। आपने कितने सरल शब्दों में इस बाबत लिखा है, उसके लिए नमन!
हार्दिक आभार संग सादर नमन ǃ माँ शारदे की असीम कृपा से गुमनाम मन में स्वतः प्रस्फुटित होने वाले भावों की ही मैं प्रायः अकविता / गद्य काव्य रचना के माध्यम से अभिव्यक्ति किया करता हूँ। प्रस्तुत रचना के नाम पर जब विचार कर रहा था तब यही नाम गुमनाम मन में आ गया था । सादर,