प्रकाश के स्रोत
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प्रकाश जब
आगे से आता है
तब पीछे बनती है परछाई
और जब यह
पीछे से आता है
तब आगे बनती है परछाई
हमारी परछाई बनती है
क्योंकि
प्रकाश नहीं गुजर सकता
हमारे आरपार हो कर
हम पारदर्शी नहीं
इसलिए बाहरी स्रोत से
रोशन नहीं हो सकती
अंदर की दुनिया
हम प्रायः रहते हैं
बाहर की ही दुनिया में
और कभी
झाँक कर नहीं देखते कि
हमारे अंदर
प्रकाश है या अंधकार
जिन तत्वों से
यह सृष्टि बनी है
उन्हीं तत्वों से
बना है हमारा शरीर
प्रकाश के स्रोत
समान रूप से हैं
बाहर भी
अंदर भी
अपने भीतर
झाँककर देखिएगा
अंदर कमी नहीं
प्रकाश की
और इसके स्रोतों की
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– गुमनाम कवि (हिसार)
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Satya vachan…..taarkik andaaz….
हार्दिक आभार संग नमन ǃ
भाई बेहतरीन रचना …………….
हार्दिक आभार संग सादर नमन ǃ
गुमनाम कवि जी, तर्कसंगत रचना है आपकी। आप गुमनाम क्यों है। आपना नाम भी शेयर करिए
सुप्रभात माननीय सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी ǃ मैंने अपने अध्ययन के दिनों में वर्ष 1991-92 में कुछ रचनाओं का सृजन किया था और तत्पश्चात मई 2013 में जब मैं फेसबुक के माध्यम से अभिव्यक्ति की दुनिया में पुनः सक्रिय हुआ तब अपने नाम से अपनी रचनाओं को पोस्ट करने का साहस न जुटा पाया था। इसलिए गुमनाम कवि के नाम से एक फेक आई.डी. बनाकर रचनाएँ पोस्ट की तो इस नाम को बहुत स्नेह मिला। फेसबुक पर आरंभ में पूरी तरह गुमनाम रहा था परंतु सुधी साथियों के स्नेह के वशीभूत होकर ‘अध्यात्म, दर्शन एवं चिंतन आधारित अपनी रचनाओं के संकलन ‘गुमनाम दर्शन’ के प्रकाशन के साथ ही अपनी गुमनामी को दूर दिया…. सिवा इस नाम के ǃ स्नेहभाव के लिए आपका भी हार्दिक आभार एवं सादर नमन ǃ