प्रौढ़ शिक्षा
आ अब लौट के चल उस गाँव मे
एक चौपाल बिछायें बरगद की छाँव मे
गाँव के बुजुर्गों के पढ़ना सिखायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
जहाँ बूढ़ी तायी चिट्ठी नही पढ़ पाती है
अपने बटुए के पैसे नही गिन पाती है
उसगाँव मे सबको शिक्षित करायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
जहाँ सूरज की किरनों से समय का पता चल जाता है
मास का पता पूरनमासी के चाँद से चल जाता है
उस गाँव मे समय के घटना चक्र को समझायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
जहाँ मन्दिर पर लिखी आरती कोई नहा पढ़ पाता है
पुजारी के मंत्रों को कोई नही समझ पाता है
उस गाँव मे ईश्वर की महिमा का ज्ञान करायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
जहाँ खेतों की गुणवत्ता कोई नही समझ पाता है
सिंचाई के साधनों से अनभिज्ञ रह जाता है
उस गाँव को हरियाली का रास्ता दिखायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
जहाँ रोगों के इलाज से लोग कतराते हैं
क्योंकि दूर शहर कोई नही जा पाते हैं
चलो उस गाँव मे छोटा सा दवाखाना खुलवायें
प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलायें
चलो पढ़ायें सबको शिक्षित करायें
(अनूप मिश्रा)
Bahut bahut khoobsoorat bhaav…..
अति उत्तम भाव ………….
निराली सोच का घोतक है आपकी रचना!