बीता आषाढ़ मास आया सावन
मेघ झरे श्यामल नभ से छन छन
चहुँ ओर नव पल्लव लेता जीवन
पथ प्रशस्त सृजनता का हर क्षन
उमड़े घन घनघोर घिरा व्योम सारा
दिनकर छिपे गिरा उष्णता का पारा
गहराती अवनि पर तमी अधियारा
शैल शिखा उमड़ती विहंगम धारा
सरर सरर सरगम स्वर नीड़ बजाते
चातक विरह वेदना की राग सुनाते
प्रणयातुर कीट विहग रोम सिहराते
म्याऊ म्याऊ करता मोर दादुर टर्राते
रिमझिम-रिमझिम नभ गिराए मोती
शीतल सौम्य नव प्रकृति तन धोती
नदियाँ पहाण वन सब विह्वल होती
तपती विरहिणी कही बदन भिगोती
बेल लतिका शिखर छूने को प्यासी
विरहि सरिता सागर से मिलने जाती
झर झर बहते नैन साजन अभिलाषी
कर क्रंदन बैठी कोई रमणी उदासी
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सुरेन्द्र नाथ सिंह ” कुशक्षत्रप”
खूब बढ़िया सावन मना रहे हैं आप. बहुत सुंदर रचना…………..यूँही लिखते रहिये सावन में भिगोते रहिये………..बनारस से मेरा भी बहुत गहरा रिस्ता है.
Vijay ji, I give heartiest thanks you for your lovely comments on this composition.
Sir now a days, I am in Nagaon Assam.
My native home is in Varanasi.
बहुत ही खूबसूरत सावन का दृशय और उसके साथ मचलते अरमान और बेचैन मन…..
मोर की आवाज़ शायद म्यों सी होती…पता मुझे भी नहीं पूरा… हा हा हा…..
Chandr Mohan Sharma ji, i have read somewhere the sound of peacock like myau, so i have written.
I give a lot of thanks for your kind comment on my composition. Realy I wait your comments when I publish my poem on this site eagerly…..!
bahut hi behtarin sir…….
Maninder ji Thanks Friend………..!
सुरेंद्र जी सावन तो आ गया किन्तु सावन के आने से भी ज्यादा आपकी रचना को पढ़कर जो एक अच्छा सा एहसास मिला है उसके लिए आपकी रचना काबिले तारीफ है l
राजीव जी सावन से ज्यादा मुझे भी आपका मेरी रचना के प्रति प्रेम ने मन मोहा है। आपके निरंतर प्रेम के लिए आभारी हूँ।
प्राकृतिक सौन्दर्य के स्वररूप में सावन की अपनी विशेषता है उसको प्रत्येक पहलु को छूकर बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने सुरेंद्र …अति सुन्दर !!
निवातियाँ जी आशीर्वाद के लिए मै आभारी हूँ आपका!
Sawan aur sajan – bita ashad mas sawan aya bahut hi achha hai sir jee. Aapke pankti se sabd sawan ke rash se bhija hua hai. bahut khub.
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ।
Nice poem Surendra ji.
Meena Bhardwaj ji thanks a lot for your kind comment
Surendra ji very very nice .
Thanks Kajal Soni mam!
क्या बात है सुरेन्द्र जी आप तो छा गए गुरु ……………………………………. बहुत ही बढ़िया !!
सर्वजीत जी, आभारी हूँ आपका, अनवरत प्रेम सुधा बरसाने के लिए!
मन को अभिसिंचित करती इस रचना के लिए कुशक्षत्रप जी को ठेरो बधाइयाँ।
गत कुछ दिनों तक विरत रहा। आपकी उत्कृष्ट रचनाओं पर प्रतिक्रिया न दे पाने के लिए क्षमा!
सर आपकी यह रचना निर्विवाद रूप से प्रकृति की सुंदर मनोरम छंटा और उसमे सहज मानव रसिक मनभावों का सुंदर चित्रण करती है।
याचना पूर्वक एक निवेदन है कि आपकी रचनाओं की कुछ पंक्तियों में सटीक मात्रात्मक तुकान्तो का कहीं कहीं भटकाव नज़र आता हैं। उदाहरण के लिए उपरोक्त रचना की निम्न पंक्तियो पर पुनः विचारण करें-
‘चातक विरह वेदना की राग सुनाते’
‘अवनि पर फैली निशा सी अँधेरा’
परन्तु फिर भी आपकी रचनाएँ काबिले तारीफ़ होती हैं।
अरुण जी, मेरी रचना पर काव्य संकलन के इस पटल पर आपकी पहली प्रतिक्रिया मुझे मिली और वह भी एक बड़े ही गुरुता के भाव से। आपके निश्चल प्रेम का कोटि कोटि आभार।
आपने जिन पंक्तियों की ओर ध्यान आकर्षित कराया है, निश्चय ही मै उन्हें यथा शीघ्र कुछ सुधार करूँगा। आप से मेरी विनती है की यूँही सटीक और अर्थपूर्ण टिपपणी से मुझे अभिसिचित करते रहे।
आपका पुनः धन्यवाद देता हूँ क्योकि मेरे पास प्रभु का दिया यही शब्द ही है। आपके प्रेम के लिए असीम साधुवाद!
मैं प्रयास करता रहूंगा साथ ही आपसे यही अपनी रचनाओ पर भी अपेक्षित हूँ। आपके इन सद्भावों हेतु नमन!
सुरेंदर जी, बहुत सुन्दर रचना है
रिंकी राउत जी आभार आपका!
अरे भाई सुरेंद्र ये तो marvellous है. किस मूड में थे जो इतने उच्च स्तर की बेहतरीन रचना लिख डाली. निश्चित ही सावन पर एक अद्भुत रचना.
शिशिर सर बस आपके आशीर्वाद से संभव हुवा है!