उमड़ घुमड़ के आइल बदरवा
फैलल बा अरमानन के चदरवा
भिजेला मन होके बावरवा
येही सावन में
देखब जब भिगल आपन बदनवा
अपनहि झुमब गाइब गनवा
अपनहि मोहा के रह जाइब हो रमवा
येही सावन में
खुबसूरत होई जाई चमनवा
हरियारी में डूब जाई इ मनवा
हरिहर चूडियाँ पहिरब सजनवा
येही सावन में
पेड़वा पर झुलवा डरा दे सजनवा
सखियन के संग हम मारव पेगवा
खिल खिल महकी मोरि जियरवा
येही सावन में
महक में बहक जाई कजरवा
खनकी चूड़ी झनकी पयलवा
ओतने बरसी सावन के बदरवा
बुझ जाई सबकर मनके पियसवा
येही सावन में।
Beautiful………………
Nice…………………………
वाह ….बहुत खूबसूरत…..
जिनके साजन गए परदेश उनके लिए भी कुछ कहिये
बहुत ही लय बद्ध गीत……..
उम्दा!
Aap sab ka hardik Dhanyabad………….
Surender ji kosis karungi……. Kuch likh Saku… Apki apekthhanusar….
भोजपुरी भाषा का प्रयोग कर सावन पर खुबसुरत लोकगीत रचा आपने ….बहुत खूब ।।