थोड़ा वक्त मेरे साथ गुजार कभी,
माँ की तरह मुझे भी कर प्यार कभी.
मेरी बांहे भी तुझसे लिपटने को तरसती है
तू जो हों दुखी तो ये आँखे भी बरसती है.
सब कही टूट ना जाये ! इसलिए मैं रोता नहीं
तू जब देर से घर आता है तो बस ये आँखे बंद होती है,
सोता मैं भी नहीं जब तक तू सोता नहीं.
माना की तुझसे दूर रहां हूँ मैं
पर क्या खबर है तुझे ! कितना मजबूर रहां हूँ मैं.
त्योहार क्या होते है मैं भूल गया
जब मैं तुझसे, तेरी माँ से दूर गया.
अब आया हूँ लौट के तो तेरा सहारा चाहिए,
शाम हों चुकी है इस नाव को किनारा चाहिए.
है ये पल आखिरी ज़िन्दगी के
कभी ठीक , तो हूँ बीमार कभी
थोड़ा वक्त मेरे ……
पुत्र प्रेम की अभिलाषा में एक पिता के ह्रदय की भावनाओ को परख शब्दों में तराशने का अच्छा प्रयास !!
bahut chhe sir jee.
पिता के ऊपर लिखी गयी सुंदर रचना………….
Nice one……….,
very nice brother………
Bahut hi bhaavuk or pita ki vedna darshaati.. Atu sundar….
एक पिता के ह्रदय की पुत्र के प्यार की अभिलाषा में क्या वेदना होती है, रचना में उभर कर आई है। बहुत खुबसूरत!