कौन कहता है
मुर्दो में जान नहीं होती……..!!
हमने तो देखि है,
शहर में चलती फिरती जिन्दा लाशें !!
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अब न पूछना की इसका सबब तुम हमसे………..!
कितनो ने देखा है, उस अबला को…
दरिंदो के चंगुल से छुड़ाने की गुहार लगाते
और कितने बुजदिल गुजर गये
नजर छुपा के, दुम दबा के…………………!!
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जब कोई जवान शहीद होता सीमा पर
गर्व से सीना चौड़ा कर सब महिमा गाते
कभी अपने अंतर्मन से भी पूछा एक पल
बिन स्वार्थ के हम कितना फर्ज निभाते !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
बहुत सुन्दर रचना…………………
धन्यवाद शिशिर जी ……….!!
वाह निवातियाँ जी बहुत ही उम्दा लिखा आपने…….सच हम मुर्दो की तरह है…..गलत देख कर भी चुप करके वहां से चले जाते है…….
बहुत बहुत धन्यवाद मनी………आपका विचार उत्तम है प्राय होता यही है …………….!!
बहुत ही सुंदर कटाक्ष किया है आपने………….बहुत खूब……………………………..
बहुत बहुत धन्यवाद विजय ………..!!
बहुत तीखा कटाक्ष…..बहुत बहुत खूबसूरत तरीके से…..
अनेको धन्यवाद बब्बू जी ………!!
वाह ! निवातियाँ जी कमल कर दिया अंतर्मन को झंझोरती खूबसूरत रचना l
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद राजीव …!!
गगनचुम्बी आकर्षक रचना ..
डॉ लाल आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया !!
Murdo mein jaan aapne wakye mein didhaya dikhaya hai , apni rachnatmak dritikon ko ek abla aur bebas ….. wah kya kabile tarif hai.
मूलयवान प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद बिंदु …!!
बेहतरीन रचना ,अति सुन्दर !!
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी…….!!
Bahut sunder rachana…….
रचना नजर करने के लिये धन्यवाद सविता जी।
सही फरमाया जनाब – आज बिना स्वार्थ के कोई कुछ नहीं करता ………………………. बहुत ही बढ़िया …………………….. बेहतरीन निवातियाँ जी !!
सत्य कहा आपने जमाने कि यही रीत है… बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर्वजीत जी ।।
आँखों के सामने गलत देख कर कोई निकल जाये, तो क्या वह जिन्दा इंसान कहलाने का हक रखता है, कतई नहीं। वह मुर्दा लाश ही है। बेहतरीन सर जी। अंतिम 4 पंक्तिया भी विवश करती है दुबारा पढने और सोचने को!
खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुरेन्द्र……… ।।
पूर्व प्रकाशित रचना “गुरू” पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है ।