देर रात घर आ,
बेटे से मिलने ख्याल आया,
गया कमरे में धीरे से उसके,
मासूमियत से भरा चेहरा,
मेरे आँखों के सामने आया,
सीने से हटा किताब,
आँखों से ऐनक,
गाल पर उसके जोरदार,
तमाचा लगाया,
दो मिनट पहले व्हाट्स ऐप पर,
ऑनलाइन,
मुझे देख सोने का बहाना बनाया,
अंतरजाल ने सभी को,
अपना शिकार बनाया,
मिलता नहीं कोई,
ना गलियों में, ना आँगन में,
व्हाट्स ऐप का दौर जब से आया,
इसे इंसान की जीत कहु या हार,
हर रोज इस सवाल ने सताया,
वास्तविकता का सजीव चित्रण ……………!!
thanks nivatiya ji apka
Realty,nice poetry keep it up
thanks rajeev ji……..
सही लिखा मनी जी आपने आजकल जिंदगी की वास्तविकता यही हो गयी है. बहुत खूब……………
thanks vijay ji……
टूटते रिश्तों में फिर भी इसने काफी मदद की है. हालांकि तकनीकी पर अधिक आश्रय भी ठीक नहीं.
rishte bhi toot rahe aur bacho ke samne asse halat paida ho rahe hai jinka aane wala kal bahut hi darwana hoga….sukriya shishir ji rachna padne ke liye….
अलग तरह की उत्कृष्ट रचना
thanks dr chhote lal ji……..
Today’s realty,nice….
thanks meena ji…….
तकनीक की जीत और घर में बैठे रिश्तों की हार ———– घर में आपस में कोई बात नहीं करता बस व्हाट्स ऐप चालू …………………. बेहतरीन मनी !!
thanks sarvajeet ji
हाँ कुछ चीजे जब जुनूनी हो जाए तो नुकशान होता है। अति सर्वत्र वर्ज्यते। पर whatsapp और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया ने दिलो की दूरिया मिटाई भी है।मेरी राय में रचना में दोनों पक्ष उभरने चाहिए।
ji aap ne bikul thik kaha……..par acche se jyada, ek bhut bada vinash samne dikh raha hai agar humne apni pidhi ko sahi rasta nahi dikhaya