मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
साथ खड़े हैं सब राख बनने तक इंतज़ार में,
सुलग चुकी है चिता, सांस लौट आई तो क्या,
बहुत सपने जिया है तू, बहुत से हैं टूटे पड़े,
मौत की आगोश में डाल जिंदगी लौटी तो क्या,
खाली हाथ आया था, खाली हाथ अब चला,
कन्दरा में रहा या महल खड़े किये तो क्या ?
मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
तंत्रिकाएं भ्रमण पर हैं, अब जरा ध्यान लगा,
पास खड़े हैं जितने, अब दूर हैं कितने बता,
देख तेरी जिंदगी की गठरी में है क्या बचा,
टुकड़ा भी नहीं बचा तो समझ है ये तेरी खता,
साथ जो खड़े हैं यहाँ बस तेरे निपटने तक,
मंद-मंद आवाज में रहे अपने-अपने इरादे जता ।
मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
जलने दे जिस्म को, रूह से तू घूम के आ,
देखना कहीं तेरी तस्वीर भी जली है क्या,
म्यान में थीं पड़ी हुई, खिंच चुकीं तलवारें,
रूप कोरा बचा या तिलक चढ़ चुका है क्या,
देख तू था गन्दगी, जाते ही घर-द्वार धुला,
विलाप का कोलाहल और अश्रु थम गए क्या ?
मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
क्या करेगा बैठकर, किससे कहेगा निज व्यथा,
साथ जो बमुश्किल खड़े हैं, रूह कह होंगे जुदा,
होंगे जो निःस्वार्थ मन, बस उनकी यादों में बसा,
सिर्फ किस्सों में रहेगा, इतिहास होगा तुझपे फ़िदा,
कितनो से लड़ा-झगड़ा तू मजहबों के नाम पर,
अब तू देखकर बता, ईश्वर है वही, वही है खुदा ।
मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
देख समाज के ठेकेदार किस तरह उमड़ आये,
जबतक तू चलता रहा अवसर पर छलाता रहा,
तूने भी जिनको छला वो भी साथ चले आये,
आखिरी मौका बचा, मन का विष उगलने का,
अब जरा तू ही बता, तेरे मन में है क्या बचा,
उठकर के बैठेगा तू या पा लेगा अपना खुदा ।
मौन पड़ा रह यूँही,
अब न तू होश में आ !
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
जीवन के सत्य को उकेरती सुन्दर रचना. विजय इसी विषय पर आप पूर्व में मेरे द्वारा प्रकाशित रचना “जिंदगी के दौर” भी अवश्य पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया भेंजें.
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
उत्तम कृति अभिनन्दन
खूबसूरत सराहना के लिए आपका भी दिल से अभिनन्दन अभिषेक जी.