पेड़-लत्ताओं की
कच्ची हरी पत्ती
सफेद होकर गिरे जाती है
फिर से नयी हरियाली
पेड़ों में छा जाती हैं
सूर्य की प्रकोप से सुखी
बुढ़ी धरती भी
वर्षा की बूँदों से
हरे हो जाती हैं फिर से
नदि-नाले भी
हमेशा एक जैसी
नहीं रहती
वक्त के साथ
अपना पथ बदलती है
लोग भी तो कहते हैं
कि यह सृष्टि भी
परिवर्तनशील हैं
खड़िया टोला
गन्दी बस्ती में रहनेवाली
भोको की माँ
पूछ रही हैं
क्यों नहीं बदल रही है
मेरी हालत?
क्या मैं इस सृष्टि का
अंग नहीं हूँ?
गहरा कटाक्ष………….
धन्यवाद सर जी …………….
सुंदर कटाक्ष ……………………………………….
प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद विजय जी
बेहतरीन व्यंग …………. अपितु ……संसार में इंसान विशिष्ट प्राणी है …इसलिए उसका परिवर्तन कुछ मायनो में उसके कर्मशीलता पर भी निर्भर करता है !!
Maa ki lalak aur jigyasha bas ek sapne ki bhanti hoti hai.wah to dusre ka dard bantne ke liye janm li hai uski jigyasha bahut had tak sahi bhi hai. haalat aur sanyag ne ushe yahin par pachhad kar rakkha hai. dhanyabad
बहुत जी खुबसुरत किस्कू जी, आपका प्रयास सार्थक!