शर्मंदगी का दंश यूँ भी झेला जाता है कभी कभी,
जिसके नाम से सुर्खियों मे रखते है दुनिया वाले,
उनकी नजर अंदाजी का जलवा होता है इस तरह,
जैसे मिले हो वो किसी अजनबी से अभी अभी ।।
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
शर्मंदगी का दंश यूँ भी झेला जाता है कभी कभी,
जिसके नाम से सुर्खियों मे रखते है दुनिया वाले,
उनकी नजर अंदाजी का जलवा होता है इस तरह,
जैसे मिले हो वो किसी अजनबी से अभी अभी ।।
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
वाह वाह. बेहतरीन ……………..
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी !
अति सुन्दर…………।.
धन्यवाद मीना जी …………..!!
बहुत ही बढ़िया …………………………….. बेहतरीन ……………………….. निवातियाँ जी !!
अनेको अनेको धन्यवाद सर्वजीत जी ………..!!
वआहह….कमाल ही कर दिया….शब्द नहीं मेरे पास कलम की इस दंश के लिए…..बहुत ही गहरे बेहतरीन….लाजवाब…..बेमिसाल……..
ऐसा मत कहिये बब्बू जी ………शब्दो के जादूगर है आप ……..हाहाहाहा ………….बहुत बहुत धन्यवाद आपका !!
बहुत खूबसूरत……………..शर्मिंदगी में इंसान अजनबी हो ही जाता है …………..
तहदिल से शुक्रिया विजय …………………!!
बेहतरीन ……………………….. निवातियाँ जी !!
तहदिल से शुक्रिया अभिषेक …………………!!
bahut hi behatarin D K Sahab.
तहदिल से शुक्रिया बिंदु …………………!!
वाह निवातिया जी……………………………. आप ने बहुत पुराना किस्सा याद करवा दिया
बहुत बहुत धन्यवाद मनी ……………!!