जग सारा मिटटी सदृश्य पड़ा
गुरु कृपा से बनता सुघर घड़ा
नर ज्ञान ले देव पंक्ति में खड़ा
बन निर्भय उच्च शिखर चढ़ा
संसार गोविन्द को जान न पाता
गर गुरु नहीं सच्ची राह दिखाता
गुरु प्रकाश जब नर-नारी पाता
जीने का उद्देश्य समझ में आता
दिव्य ज्ञान दीक्षा की मिटे प्यास
सच्चे गुरुवर का जब मिले साथ
पहुचता नर साक्षात् प्रभु के पास
कट जाता पल में सारा मोहपाश
गुरु पारस करते लोहे को सोना
गुरु कृपा हो तब काहे को रोना
नानक कबीर की वाणी सलोना
गुरु अमृत कलश इसे न खोना
गुरु सतगुण से अवगुण हरते
तब कहीं हम भवसागर तरते
गुरु माता पिता से होते बढ़के
नमन गुरु चरणों में शीश रखके
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
गुरू महत्ता का सटीक चित्रण ……अति सुंदर सुरेन्द्र ।।
आशीर्वाद हेतु कोटि कोटि करबद्ध आभार!
बेहद खूबसूरत रचना ……………………………. संसार रूपी समुन्द्र को पार करने के लिए गुरु का सहारा लेना अत्यन्त आवशक है —— बहुत ही बढ़िया सुरेन्द्र जी !!
Sarvjeet ji निरंतर उत्साहवर्धन से ही कुछ लिख पता हूँ। आप संभी शुभ चिंतक मित्र भी गुरु सदृश्य ही हैं। आपको प्रणाम!
सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप” जी अच्छी रचना !
सिरधरि गुरु आयसु अनुसरहू ,प्रजा पालि परिजन दुखहरहू |
गुरुके बचन सचिव अभिनन्दन ,सुने भरत हिय हित जनुचंदन |
सुख मंगल जी धन्यवाद!
अति उत्तम सुरेंद्र ………………
धन्यवाद शिशिर सर!
सुरेंदर जी बहुत भाग्यवान होते हैं वो लोग जिन्हें सच्चा गुरु मिल जाये .कहते हैं. गुरु गोविन्द दोनों खड्डे ,का के लैगून पांव ,बलिहारी सतगुरु आपने. जिन गोविन्द दियो. मिलाये .गुरु के आशीवाद से बढ़ कर कुछ. भी नहीं . आप की कविता बहुत सूंदर है
गलती से लागूं की जगह कुछ और छप. गया है ( का के लागूं पांव )
किरन जी अति आभार आपका, मधुर और ज्ञान पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए!
गुरु के प्रति आदर भावना से सजी सुन्दरतम रचना सुरेन्द्र जी !
मीना भरद्वाज जी कोटि कोटि धन्यवाद, रचना की प्रशंशा के लिए!
जितनी भी प्रसंशा की जाये उतनी कम………..बहुत ही ख़ूबसूरत रचना
मनिन्द्र जी धन्यवाद!
अत्यन्त सुन्दर…….गुरु ही प्रकाश दिखाता….हाँ आपकी इस पंक्ति से थोड़ा सा असहमत हूँ….गुरु माता पिता से होते बढ़के….श्रवण के माता-पिता ही सब कुछ थे…और उसका नाम आज भी सब के दिल को प्रकाशित करता है….रोम रोम खिल उठता है…..
बब्बू जी आपकी असहमति सर आँखों पर। विचारो की भिन्नता होना भी स्वाभाविक ही है। मैंने संस्कृत में एक दोहे को आधार बनाया था। आपका निश्चल प्रेम के लिए शुक्रिया
Superb poetry… Sir..
डॉ स्वाति गुप्ता जी, रचना पसंद आई, इसके लिए आभार!
सुरेन्द्र जी गुरु की महत्ता की बहुत ही सुंदर और आलौकिक प्रस्तुति l अति सुंदर रचना l
राजीव गुप्ता जी, आपकी प्रतिक्रिया ही हमको सबल बनाती है। धन्यवाद !
अति सुंदर रचना ……………………………….
विजय जी आपको आभार….!
अत्यंत सुन्दर सुरेन्द्र भाई
अभिषेक जी आभार आपका!