अब तुम बतला दो यकीं
करूँ किस कहानी पर
और कितना रोऊँ दोराहे
खड़ी इस जवानी पर
लेकर दिल में प्यार बहुत
सेवा को मैं निकला था
क्या बताऊँ क्या क्या
जुल्म हुए मनमानी पर
बचाया जिसको धूप दर्द से
उसने ही पत्थर मारा है
खून गया बेकार मेरा
अपनों ने ललकारा है
भूल जाते हैं बेगैरत
किये गए अहसानों को
गुमराह करके भेड़िये
सजाते कब्रिस्तानों को
very innovative…..
बहुत खूबसुरत,,,,,,,,,,,,, ,।
अति सुंदर. भावनात्मक चोटों का दर्द बताती रचना
बहुत ही खूबसूरत………….
बहुत खूब…………………………………….
Dil aur pyar ki ek dard bhari dasta wah khub.
सभी मित्रों का धन्यवाद