खूबसूरती तो तुम्हारे हर नज़ारे में है
चमक उठने की चाहत एक एक सितारे में है
खुदा ने जो नूर बक्षा है तुम्हे
करिश्मा तो उनके हाथों के कारगुजारे में है ……
एक तरफ है आघोश में लेने को आतुर बर्फ से ढके तुम्हारे पहाड़
तो दूसरी तरफ मन को नचाती तुम्हारे झेलम की थिरकती धार……
तुम्हारी वादियों में न जाने कौन सा जादू है जो मन में बस गया
आ तो चुकी हूँ घर को, व्यस्त हूँ अपने कामों में पर कश्मीर दिल से न गया….
मन चंचल ख्यालों में खोये है
सफ़ेद बर्फीले चादर के
वहां के पंछि गुनगुना रहे
आज भी कानों में आकर के…..
गीत नया संगीत नयी वहां की शोभा ही निराली है
मेहमान नवाजी की जिम्मेदारी जेसे कुदरत ने ही संभाली है….
बन ठन कर जेसे आई हो सुंदरी
जिसके माथे की शोभा गुलमर्ग के पहाड़ है
हर तरह से है परिपूर्ण
जिसके पास खूबसूरती अपार है
फूलों से है जो सजती हरयाली जिसका श्रींगार है…
बुला रही हो जेसे प्यार से, सेब जिसका एक मात्र आहार है….
इसकी आभा को शब्दों में समेटना है मुस्किल
इसकी खूबसूरती का दीदार बार बार करना चाहे दिल…
तुमसे दोचार होकर भूले मेने सारे गम और पीर
फिर से मुझे बुला लेना ऐ मेरे जन्नत-ए-कश्मीर
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thanku so much D.K ji……
मैं कश्मीर नहीं गया….पर आपकी रचना के माध्यम से घूम आया…..बहुत बहुत शुक्रिया…..
ohh thanku Babucm ji….
बहुत खूब…………………..कश्मीर यात्रा का आभास कराती खुबसुरत ऱचना………………………….
Thankyou so much vijay ji…..