?गीत?
तर्ज: बबूल का ये घर आँगन दो दिन का ठिकाना है!!
गुरुजनों का जीवन तो पढ़ना और पढ़ाना है
आ गया जो गुरू शरण में उसको कुछ सिखाना है !!!
इनके दरबारो में ज्ञान की जले ज्योती
श्रद्धा से जो भी आ गया मिल गया उसे मोती
ज्ञान गुन की गंगा इनको ही बहाना है
गुरुजनों का जीवन तो पढना और पढ़ाना है!!
सदा इनकी बानी से बरसे अमृत धारा
इनके मेहनत से हो जगमग जग सारा
इनकी ज्ञान गरिमा को आगे ही बढाना है
गुरुजनों का जीवन तो पढ़ना और पढ़ाना है!!!
देश और धरम दोनो गुरुजनों के साये में
सुख शांति समता मिलती इनके छाये में
इनके ही आदर्शों को मिल हमें सजाना है
गुरुजनों का जीवन तो पढ़ना और पढ़ना है!!!
ज्ञान देने वाला तो कभी नहीँ मरता है
सूर्य चंद्र तारे की तरह रोशनी वो करता है
अच्छे सच्चे गुरुजन का बीड़ा तो उठाना है
गुरुजनो का जीवन तो पढ़ना और पढ़ाना है !!!!!!
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??डॉ.सी.एल.सिंह??
अति सुन्दर………….
धन्यवाद सर जी
Nice…………………………………….
बहुत खूबसूरत …बड़ा ही रोचक कर्णप्रिय गीत बन पड़ा है इसके साथ साथ गुरु की कर्म प्रधानता को बखूबी प्रस्तुत किया है ……….इसके लिए बधाई के पात्र है !!
दिल से आभार व्यक्त करता हूँ
“”” गुरु महत्व “”
हमसे अपनी मंजिल का पता पाया नहीं जाता
अगर तुम ना होते तो यह गीत गाया ना जाता
1 तुम्हीं ने दिखाया हमें उजालों का यह रास्ता
वरना पड़े रहते वहां जहां परिंदों का साया न जाता
अगर तुम …………….
2 चमन तुमसे खिला है यह बहारें तुमसे जिंदा है
तुम्हारे सामने फूलों से मुरझाया नहीं जाता
अगर तुम ……………
3 तुम्हीं ने करवाया हर पल को जीने का एहसास
. वरना जाते लम्हों पर गौर फ़रमाया नहीं जाता
अगर तुम ……………
4 नजर आई है जिंदगी नई-नई सी अब हमें
इतनी सवारी जिंदगी की गुरु को भुलाया नहीं जाता
अगर तुम …………..
(मुंशी प्रेमचंद उदय )
Bahut umda……..
धन्यवाद सर …………..
डॉ.सी.एल.सिंह जी सुन्दर रचना !
आप अध्यापन करते हैं | आपके स्वागत में एक रचना प्रस्तुत –
गुरुजनों का जीवन ,अनमोल खजाना है
वहती ज्ञान गंगा व ,श्रद्धा का ठिकाना है |
शान्ति और समता ,की ज्योति जगाना है
आदर्श भाव उनमें , धर्म क खजाना हैं |
राष्ट्र -धर्म जिनमें व मोतियाँ बहाना है
गुरुजनों का जीवन ,अनमोल खजाना है ||
डॉ साहब, आपकी गुरु भक्ति में यह अत्यंत ही खुबसूरत रचना हिंदी उपवन को मिली है
इस कविता में गुरु की गरिमा का बखान बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। गुरु जनों को अपने पद की गरिमा हर स्थिति में बनाए रखना चाहिए। गुरु जनों से समाज की समाज को ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण अपेक्षाएं होती है।
कबीरदास ने गुरु की महिमा का वर्णन इस प्रकार से किया है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पांय।
बलिहारी गुरु आपने ,गोविंद दियो बताए।।