दिल से मैंने भगवन को आवाज़ लगाई,
झट से एक प्रतिमा मेरे सामने आई,
बोलो भक्त क्या बात ? क्यों आवाज़ लगाई ?
कर दे मेरे काम सारे, ऐसे जिन्न की इच्छा जताई,
हर वक्त काम बताना हो, वर्ना कर देगा जिन्न पिटाई,
मुस्कुराते हुए कर दी हा, भगवन ने जो शर्त बताई,
पल में सारे काम खत्म, जिन्न से पीटने की चिंता सताई,
फिर दिल से मैंने भगवन को आवाज़ लगाई,
कुछ नहीं हो सकता, ऊपर से आवाज़ आई,
जिन्न ने भी और काम की, घूर अपनी इच्छा जताई,
मैंने अपने विद्यालय के गुरु को सारी व्यथा सुनाई,
सुन सारी बात, मेरी समस्या चुटकी में सुलझाई,
पेड़ पर चढ़े, पेड़ से उतरे, खाली समय में,
ज्ञान के दीपक से, मेरे जीवन में ज्ञान की लौ जगाई,
शत-शत कर प्रणाम, गुरु जी को मेरी आँखे भर आई,
दिल से मैंने…………..
नोट-बचपन में मैंने ये कहानी सुनी थी बस उसी को कविता का रूप दिया है मैंने,
कैसे गुरु हमारे जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या को आसानी से सुलझा देते है | हमे कभी भी उनका निरादर नहीं करना चाहिए………….
nice poetry mani ji keep it up !
thanks rajeev ji……………………
very nice mani ji
thanks abhishek ji…………………
गुरुजी को शत शत नमन वंदन
गुरु जी को मेरी तरफ से भी शत-शत नमन वंदना
बहुत खूबसूरत …..मनी !!
बहुत बहुत आभार आपका निवातियाँ जी
बहुत ही सूंदर………………गुरु बिन ज्ञान कहाँ…………………..
बहुत बहुत आभार आपका विजय जी
Behad khoobsoorat……….
thanks c m sharma ji
बहुत सुन्दर रचना मनी जी !
बहुत बहुत आभार मीना जी आपका
बहुत खूब ………………………………….. मनी !!
बहुत बहुत आभार सर्वजीत जी आपका
Bahut khoob…maniji
thanks swati ji…….
बहूत ही सुन्दर नमन मनी जी
thanks abhishek ji…..
मनी जी गुरु वंदना के लिए सजदे में मेरा सर झुकता है!