कुछ लोग यहां घाटी में,सिर्फ नफरत फ़ैलाने जाते हैं,
पत्रकारिता के नामपर,आतंकियों को मरहम लगाने जाते है।
कुछ तो यहां, आतंकी की तुलना भगत सिंह से कर जाते है,
सर देश की सोचा करो,हिजबुल की ख़ातिर क्यों गरमा जाते है।
बताओ सैनिक वीरो की शहादत पर,आंसू कभी बहाए हैं?
लिया कभी इंटरव्यू तुमने विधवाओं का संवेदना कभी जताए हैं?
विस्थापित कश्मीरी पंडितो के परिवारों के बारे में सोचा हैं?
मानवाधिकारों की चर्चा करते,भुलाकर इनको, कुछ तो लोचा है!
कैराना पर खामोश रहें तुम,दादरी पर दर्द हुआ है,
पक्षपात पूर्ण ख़बरे पढ़कर,हां सबकों सिरदर्द हुआ है।
अलगाववादी ‘भटकों’को 500/- देकर,पत्थर सेना पर फ़िकवाते है,
लेकिन अपने बेटों को बाहर शहरों में या विदेशों में पढ़ने भिजवाते है।
रकम भिजवाकर हवाला से, तुमने आग जो लगाई है,
तुम्हारे प्रांत भी जलेंगे, देहकेगें, ये जो आग सुलगाई है।
__रवि यादव ‘अमेठीया’__
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रचना के भाव अच्छे हैं……………..एक बार “जन्नत की आग” पढ़ें…………..
bahut dhanyawad Vijay Kuamr ji..Zarur pdhege
बहुत सुंदर ………
धन्यवाद डॉ साहब
मीडियां तो आपके नजर में बिकी हुई हैं लेकिन आज की सरकार और उनके मुलाजिम भी कुछ कम नही।।।आपकी लेखनी में दम हैं सर,बहुत खुब
शुक्रिया वेद प्रकाश जी।
बिलकुल सही फ़रमाया आपने,सरकार भी कॉरपोरेट वर्ल्ड और इनवेस्टर्स से दबी हुई रहती है।
bika har koi hai…….bus girebaan mein jhakkar dekhta koi nahi………….bahut khub sir
शुक्रिया मणि साहब।
सब नही बिके होते, जो नही बिक़े होते उन्ही से हिंदुस्तान चलता है।
आलोक सागर का नाम सुना है आपने? जल्दी ही कविता प्रकाशित करुँगा यहाँ।
ऐसे महान हस्तियों से ही देश चलता है।
रवि इसी विषय पर आप मेरी पूर्व में प्रकाशित एक रचना “पत्रकारों से ही पाइए”. भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेंजे.
शुक्रिया शिशिर मधुकर जी।
आपकी रचना अवश्य पढ़ेंगे।
सही कहा आपने…अगर मीडिआ निष्पक्ष भूमिका निभाए….तो बहुत कुछ सही हो सकता है….अति सुन्दर….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Unbiased media is need of the hour.