दिल मे तुम बस गई स्वाँस मे रच गई
पर नजर के लिये तुम पराई रही ।
गीत तुम बन गई तुमको गाता रहा
बाँसुरी तुम बनी मैं बजाता रहा ।
स्वाँस के तार पर तुम थिरकने लगी
वाणियों में मगर ना सुनाई पड़ी ।।
दिल के तारों को तुमने तो झंकृत किया
रुप को तुमने मेरे अलंकृत किया ।
मन के आँगन को खुशबू से महका दिया
सदियों तक जो न मन से भुलाई गई ।।
साथ हर पल रही दूर रह कर भी तुम
सब कुछ कह गई मौन रह कर भी तुम
इस जहाँ से परे तुम कहाँ बस गई
चाह कर भी न मुझसे बुलाई गई ।।
बातों – बातों में ही तुम तो रुठ गई
प्यार के रिश्ते की ड़ोरी टूट गई
आस फिर भी कभी मैने छोड़ी नहीं
तुम ही रुठी कि फिर ना मनाई गई ।।
राज कुमार गुप्ता – “राज“
कोशिशें अक्सर कामयाब होती हैं……………………….बहुत खूबसूरत………………….
धन्यवाद विजय जी ।
अति सुन्दर राजीव ……….!!
हौसला आफजाई के लिए धन्यवाद निवातिया जी ।
बहुत अच्छे राज जी …………….
धन्यवाद शिशिर जी ।
बहुत ही सुन्दर……….
शुक्रिया सर जी ।
bahut badiya sir…………..
बहुत धन्यवाद मणि जी ।
Raaj kumar Gupta ji, behtrin ……..ek umda rachna……..!
रचना पढने और पसंद करने के लिए धन्यवाद सुरेन्द्र जी ।
Bahut khoob… Sir…
बहुत धन्यवाद स्वाति जी ।