रखना न पाँव जमीं पर कि घुंघरू मचल जाएंगे ।
चलना संभल-संभल कर कि पाँव फिसल जाएंगे ।
राहें मोहब्बत की सदा ही रही हैं मुश्किलों भरी,
कदम बढ़ाते ही राहों पर कांटे निकल जाएंगे ।
निगाह नीची करके ही राहों से गुजरा करो तुम,
वर्ना, मनचले आशिकों के भी पर निकल जाएंगे ।
एक बार प्यार से अपनी निगाह फेर कर देखो,
आँखों में बसे होंगे जो वो दिल में उतर जाएंगे ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
बहुत खुब विजय जी नमन
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिषेक जी.
बहुत बढिया विजय जी । सुंदर रचना ।
बहुत-बहुत धन्यवाद RAJ KUMAR जी.
बहुत खूबसूरत विजय ,,, प्रत्येक पक्ति का प्रत्येक शब्द प्रभावशाली है !!
सर, रचना आपको पसंद आई ये ख़ुशी की बात है. सराहना की लिए ह्रदय से आभार.
Bijay jee – bahut hi badiya sir, aapne pyar ke mayne ko apne ankhon mein basakar dil mein utara hai. thank you.
बहुत-बहुत धन्यवाद Bindu जी.
वाह…..कमाल पे कमाल….लाजवाब……….
सराहना की लिए ह्रदय से आभार.
wah sir kahar kma rahe ho……lajwab lajawab likhte ja rahe ho
बहुत-बहुत धन्यवाद mani जी.
मनचले आशिको के पर निकल जायेंगे……क्या विजय जी
बहुत खूब……..अपनी किसी पुरानी याद को तो नहीं लिख रहे है ना!
बहुत-बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र जी. रचना सूंदर तभी बन पाती है जब रचनाकार पात्र में स्वयं प्रवेश करता है. मैं अपनी प्रत्येक रचना में बस यही प्रयास करता हूँ.
वाह! विजय जी क्या रचना लिखी है प्यार को इतनी खूबसूरती से आपने शब्दों में उतारा है कमाल कर दिया l
खूबसूरत सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद RAJEEV जी.
खूबसूरत रचना विजय जी !
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
Superb composition.. Sir..
खूबसूरत सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया………