गुरु है एक ज्ञान का कुंआ
और शिष्य ज्ञान का प्यासा,
अपनी ज्ञानता से गुरु शिष्य की,
ज्ञान- पिपासा को है मिटाता।
गुरु है एक कुम्हार,
और शिष्य कच्चा घड़ा है मिट्टी का,
गुरु अपनी शिक्षा से,
शिष्य का पूर्ण विकास है करता,
और उसे परिपक्व बनाता,
गुरु है एक मार्गदर्शक,
और शिष्य भटका हुआ एक राही,
अपने उच्च मार्गदर्शन से,
शिष्य को सही राह दिखलाता,
गुरु एक पतवार है,
और शिष्य एक नैय्या,
सही दिशा का ज्ञान कराकर,
अपने शिष्य को वो,
भव सागर से पार कराता,
इसलिए ईश्वर से पहले,
गुरु का नाम लिया है जाता,
क्योंकि गुरु कृपा से ही,
शिष्य ईश्वर के वास्तविक,
रूप का दर्शन है पाता।
By:Dr Swati Gupta
गुरू की महिमा अपार अति सुन्दर आदरणीया
Thanks a lot …abhishek ji
अति सूंदर…………….
गुरु गोविन्द दोउ खड़े करके लागूं पाँय, बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताये.
Bahut bahut abhar…Sir…
अत्यन्त सुन्दर……..
Thanks a lot…babbu sir..
अत्यन्त खूबसूरत ………….बहुत अच्छे स्वाति !!
Thanks in tons ….nibatiyan Sir!!
अति सुन्दर ……………….
Thanks Shishir sir…
स्वाति जी बहुत खूब! आपने गुरु की उपासना में इतने अछे शब्द लिखे की मन में अनायास भक्ति जग गयी।
mam आप मेरी भी रचनाएँ देखें तो मुझे भी अच्छा लगेगा।
Apka bahut dhanyawad ..
Sir…Sir I like your poems very much….very very sorry sir…becoz of family responsibility, kabhi kabhi hi log in ho paati hoon….but whenever I read the poems written by you, babbu sir, nibatiyan sir,shishir sir and vijay sir…it refresh me and all of you are the motivation for me…or I can say that all of you r my gurus who motivate me to write something new…और इस गुरु पूर्णिमा के सुबह अवसर पर आप सब समानित व्यक्तियों को मेरा साधूवाद!!!
गुरु की महिमा का बहुत ही सुंदर और मनोहारी चित्रण प्रस्तुत करती रचना l लाजवाब l
Thanks a lot…Rajeev ji
bahut badiya swati ji…………………
Thanks tons…maniji