सोचा था ऐसा होगा,सोचा था वैसा होगा l
ना सोचा ऐसा होगा, ना सोचा वैसा होगा ll
सोचा था सोच जब दिलो दिमाग पर छाए l
क्या हुआ,क्यों हुआ कुछ समझ ना आये ll
जानता हू मै हर सोच पूरी नहीं हो पाती l
बिन सोचे मंजिल कभी नज़र नहीं आती ll
जो सोचते है उसके ही सपने बुने जाते है l
बिन सोचे कभी कामयाब नहीं हो पाते है ll
सोच हमेशा दो रूपों मे नज़र आती है l
सकरात्मक व नकरात्मक कहलाती है ll
सकरात्मक जहां आगे बढ़ना सिखाती है l
नकरात्मक स्वयं की नज़रो में गिराती है ll
सोच बदलो, ये दुनिया बदल जाएगी l
खुशिया तुम्हारे दामन मे आ जाएगी ll
घबराओ नहीं हार-जीत आती जाती है l
बड़ी सोच ही इंसान को बड़ा बनाती है ll
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बहुत खूबसूरती के साथ आपने सोच का चित्रण किया राजीव जी…………..बहुत बढ़िया
कविता को सराहने के लिए धन्यवाद मनी जी l
मैं तो सोच सोच के सोच को बदलने जो निकला….सोच ने सोच को सोच से निकाल फेंका….मैंने सोच बदल दी राजीवजी….बहुत खूब कहा आपने…..
धन्यवाद बब्बू जी l
राजीव सोच के महत्त्व की अच्छी व्याख्या.
बहुत-बहुत धन्यवाद शिशिर साहब l
बहुत ही खूबसूरत रचना…………….सकरात्मक सोच ही उचित है…………….
कविता पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद विजय जी l
सुन्दर ख्याल हैं अति सुन्दर राजीव जी……
Thank u so much Abhishek l
सकारात्मक भाव प्रस्तुत करती खूबसूरत रचना राजीव ………!!
धन्यवाद निवातियाँ जी आपकी सराहना मेरे लिए आपका आशीर्वाद है बहुत-बहुत धन्यवाद l
राजीव जी मात्राओ का इतना सटीक प्रयोग हर पंक्ति को लाजबाब बना रही है। उस पर से सकारात्मक सोच की भावना का संचार भी। बहुत ही बढ़िया राजीव गुप्ता जी।
सुरेन्द्र भाई आपका प्यार ही है जिससे ये रचना अपना प्रभुत्व ले पाती है l आपका दिल की गहराइयों से धन्यवाद l
बहुत ही बढ़िया ………………………………………… राजीव जी !!
सर्वजीत जी रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए धन्यवाद l