निकल पड़ा, लिए लफ्ज़ो की किताब,
जिंदगी के हर दौर का था हिसाब,
कुछ पन्नो पर मुस्कुराता शैशव काल,
कुछ पन्नो पर जवानी के संघर्ष का हिलाव,
टूटती कल्पनाओं का उमड़ा सैलाब,
ना चाहते बेचने निकल पड़ा अलफ़ाज़,
सहेज रखा था, वाह वाह का ख़िताब,
सोचा कुछ तो मिलेगा, बेच जज्बात,
भीनी-भीनी खुशबू वाला ईश्वर का अनुराग,
माँ-पिता का औलाद के लिया किया त्याग,
लिखी तहे दिल, देश भक्ति वाली बात,
उकेर दिया पहली नज़र के प्यार का प्रस्ताव,
सहसा क़यामत बन गुजरा लोगो का मजाक,
जैसे बलात्कार कर दिया मेरे साथ,
वो हस रहे मुझपर, जैसे पी हो मैंने शराब,
पूछ रहे कहाँ से चुरा लिख लाए किताब ?,
कहाँ लिख्वायु शिकायत ? कौन करेगा विश्वाश ?
प्रतिलिपि ने कर दिए बद से बदत्तर हालात,
झलक रही, बच्चों के चेहरों पर भूख प्यास,
देख मेरी बेबसी, मुखोटा पहन लिया मन्दहास,
रोया बहुत मैँ तन्हा हो उस रात,
सोच जाने कौन लगा गया घात ?
प्रतिलिप की मार से तड़प रहा, हर इंसान,
चाहे लेखक, वैध, अभियंता या हो किसान,
निकल पड़ा “मनी”, लिए लफ्ज़ो की किताब,
लाजवाब……..मनीजी…क्या बेबसी का चित्रण किया है……”सहज रखा था, वाह वाह का ख़िताब” में सहेज कर दो…टाइपिंग मिस्टेक है…..
तहे दिल शुक्रिया सी एम शर्मा जी आपकी सराहना और सुझाव का…………………
मनी जी आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ मजबूरी को पेश किया है जो की कबीले तारीफ है l
एक बार फिर से तहे दिल से आभार राजीव जी आपका इस सराहना के लिए
बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण रचना……………………
तहे दिल शुक्रिया विजय जी
सत्य कहा मनी दूसरे के कार्य को अपना बना कर पेश करने वालों सूरमाओं की हमारे प्यारे देश में भरमार है
सही कहा आपने शिशिर जी……………बहुत बहुत आभार इस सराहना के लिए
बहुत ही खूबसूरत मनी जी
thanks abhishek ji…………………..
वास्तविकता को मुखर करती अच्छी रचना !!
तहे दिल शुक्रिया निवातियाँ जी इस उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बढ़िया ………………………………………… मनी !!
शुक्रिया सर्वजीत जी आपकी की सराहना के लिए |
मनिंदर जी इस तरह की रचना मित्र दिल की गहराई से निकलती है, जस्बातो का जब समुन्दर फूटता है तब एक कालजयी रचना बनती है। आपकी यह रचना मुझे उसी रूप की ओर इशारा करती है।
तहे दिल शुक्रिया सुरेन्द्र जी आपका इतनी सुन्दर प्रतिक्रया के लिए