हर एक लम्हां, याद बन जाता हैं…..
तूँ! उन यादों की किताब, क्यों सजाता हैं।
जब देखता हैं, तूँ! पलटकर उन पन्नों को….
तूँ! हंसता हैं या रोता हैं, कुछ समझ नहीं आता हैं।
उन यादों को जीने में, हर लम्हां, यूँ ही गुजर जाता हैं…
हर एक लम्हां, बस एक याद बन जाता हैं…
हर एक लम्हां, बस एक याद बन जाता हैं…
भागचन्द अहिरवार “निराला”
Bahut khoob……..
very nice………….
bahut badiya sir
आसक्ति से दूर रहने की बात करती सुन्दर रचना
मनमोहक दर्शनीय ….
सुन्दर रचना………………………………………..
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद…..
अपनी प्रति क्रियाएँ देने के लिए..
आप सभी की प्रति क्रियाएँ मेरे लिए आशीर्वाद के समान हैं …