मन कर्म और वचन से जो भी साथ निभाते हैं
बिना जतन वहीँ लोग जन्मों के नाते बनाते हैं
गर आज तुमको मुझसे यहाँ कोई भी गिला हैं
जो दिया तुमने मुझको वहीँ लौट कर मिला हैं
तर्क और वितर्क से कभी आनँद ना मिलता हैं
सूरज की रोशनी से ही तो चाँद भी खिलता हैं
गर पूरा हो समर्पण तो मालिक की रहमतों से
कीचड़ में भी तुम देखो कैसे कमल खिलता हैं.
शिशिर मधुकर
शिशिर जी बहुत अच्छा कहा है आपने ,सच्चे रिश्ते मुश्किल से मिला करते हैं
किरण जी मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Waah….laajwaab….kya sachaayee rishton ki Chand panktyon mein….Sach hai Jeevan kitna bhi mushkil ho ek doosre ke prati pyar…samarpan usmein anand bhar deta hai…woh mushkilon mein bhi kamal ban khilte hain…unki support poori kaaynaat karti hai…janam ki rshte aise hi toh bante hain……marvellous…….
बब्बू जी आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद वेद जी
अति सुन्दर शिशिर जी
हार्दिक आभार अभिषेक ……….
bahut badiya sir……………..
शुक्रिया मनिंदर …………….
Very creative.. beautiful symbols woven in your lines
Swati so nice of you. Your words mean a lot. Thanks
beautiful ………………………………………. Madhukar Jee.
रचना पढ़ने और सराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सर्वजीत
शिशिर साहब गजब की रचना है l सच कहाँ आपने मन ,कर्म, वचन से जो समर्पित होता है वहीं सच्चा साथी होता है , बहुत खूब l
आपके प्रशंसा भरे शब्दों के बहुत बहुत शुक्रिया राजीव.
बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण रचना…………….अति सूंदर…………
विजय बहुत बहुत धन्यवाद ………………
तर्क वितर्क से रिश्ते ख़राब हो जाते है।
अछ्छी बात बतलाती खुबसूरत रचना
धन्यवाद सुरेंद्र ……………………….
बहूत खुब,आपने प्यार की सच्ची मानदंड तैयार किये है और इसे पूरा भी करना चाहिये