एक बार फ़िर जिंदगी
लहूलुहान हो गयी
पलक झपकते क्रूरता की
शिकार हो गयी
चीखते चिल्लाते कराहते
भागते लोग
मनवता लाचार हो गयी
एक बार फ़िर ……..
रौंद डाला बेरहम बदकार
हसीन लम्हों को
जुल्म जल्लाद को जड़ सहित
मिटाने की दरकार हो गयी
एक बार फ़िर …………
क्या मिलती है छीनकर
खुशी औरों की
चंद दानव के खूनी पंजे में
सारी कोशिशें बेकार हो गयी
एक बार फ़िर ………….
रोक सकता कौन विद्रूपता का ये नर्तन
कर रहा पददलित दुर्दांत
सारा जन गन मन
दिग्गजों की अस्मिता भी
तार तार हो गयी
एक बार फ़िर जिन्दगी
लहूलुहान हो गयी !!
!!
!!
डॉ.सी.एल.सिंह
Bahut maarmik rachna…….
पीड़ा समेटे हुए समसामयिक रचना
आपको कोटि कोटि धन्यवाद
bahut hi umda lajawab…………………
सबको दिल से नमन …..
सबको दिल से साधुवाद
बहुत खुबसूरत और मार्मिक रचना