आँख बंद कर ढूंढती हूँ ,
मैं तो अब मेरा वो बचपन .
मेरी उन धुंधली यादों में
है खिला – खिला सा वो बचपन .
जी लेती हूँ उन यादों को ,
सोच -सोचकर मैं तो अब बस .
मेरी वो यादें है ताज़ा ,
जिनमें दिखता मेरा वो बचपन .
पेड़ की उस घनी छाव में ,
खेलती मेरी वो दुनिया .
सोचती हूँ उस दुनिया को ,
जहां खेलता मेरा वो बचपन .
अब तो सब कुछ बदल गया है ,
उन यादों का अब कुछ बचा नहीं .
रह गयी अब यादें वो बनकर,
जिनमे रहता मेरा वो बचपन
ऋचाजी….यादें मधुर ही होती हैं ….और बचपन की तो सबसे मधुर…..बहुत खूब भाव आपके…..
thank you so much babu ji.
बहुत खूब भाव आपके…..बचपन की मधुर यादे…………एक बार “चचल मन” पढ़ें.
thank you sir. aapki rachna bhi bahut pyaari hai.
bahut badiya richa ji…..
thank you sir.
काश लौट आये
मेरे बचपन के दिन।।।।।।।
बहुत खुब रिचा जी
thank you sir.
ऋचा जी आपने बचपन के मधुर यादों को बखूबी सजोया है, अति सुंदर!
thank you sir.
उत्कृष्ट रचना हृदयंगम भाव अनोखी प्रस्तुति
thank you sir
बचपन के दिन भी क्या दिन थे ………………….. बहुत बढ़िया !!
thank you sir.