कल तक सब कुछ था हम सभी का
अब पूरब मेरा पश्चिम तुम्हारा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
माँ बाप का बहा होंगा खून पसीना
मुफिलिसी में पड़ा होंगा कभी जीना
बड़े जत्तनो से बना होंगा आशियाना
जिसे हमने बाँट किया छलनी सीना
आज हमारी एकता का कबाड़ा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
माँ बिलखती फटती पिता की छाती
कितना निर्मम हुवा बुढ़ापे की लाठी
जीते-जी बटे निज कलेजे के टुकड़े
बेबस आँखे एकटक शून्य निहारती
अब तो लगता जीवन बेसहारा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
खेत बट गया खलिहान बट गया
दूध माफिक अपना प्यार फट गया
खीच गई घर बीच सरहदी दिवार
रंजिश में पुराना दरख़्त कट गया
बुझा चिराग प्रेम का अधियारा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
कुछ पुरानी यादें———
दिनभर भले पड़ा हो अकेले बिताना
रात में एक साथ ही होता था खाना
हँसी मजाक बीच सुख-दुःख की बातें
कर बुजुर्गो की सेवा तभी सोने जाना
चलो अब इन संस्कारों से छुटकारा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
विलासिता में हर कोई यहाँ अँधा
एकाकी जीवन घर घर का धंधा
संयुक्त कुटुंब की बात हुई पुरानी
जहाँ दुखों में सब देते थे कन्धा
अकेले रहने का आदी जग सारा हो गया
माँ बाप के आँगन का बटवारा हो गया।।
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
शानदार सच समेटे भावुक रचना सुरेन्द्र
शिशिर सर, आपके आशीर्वाद से जो कुछ भी समाज में देखता हूँ, कलमबद्ध करता हूँ। पसंद आया तो मेरी मेहनत सफल हुयी। कुछ सुधार लगे तो वह भी बताएं।
बहुत ही खूबसूरत कविता की रचना की है सुरेन्द्र जी l सच्चाई को पूरे दिल से उकेरा है आपने l लाजवाब !
राजीव गुप्ता जी अत्यंत आभार आपको स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए!
लाजवाब…..बहुत ही भावुक….साथ में कटाक्ष भी करती रचना है….आज कल हो यही रहा…कुछ तो मजबूरी है किसी की नौकरी की या और…पर जो हर तरह से संपन्न हैं…वह भी बजुर्गों के साथ ऐसा ही कर रहे हैं….परिवार के संग ऐसे ही कर रहे…लालच में…बस..बंटवारा…सुख चैन किसी को नहीं मिलता…
बब्बू जी इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया के कोटि कोटि आभार मित्र! आपकी प्रतिक्रिया कुछ लिखने को निरंतर प्रेरित करती है।
सत्यपरक गम्भीर भावों को समेटे हुए खूबसूरत रचना.अति सूंदर………………
विजय जी अत्यंत आभार आपका प्रतिक्रिया के लिए!
वाह्, बिल्कुल वास्तविकता दर्शाया आपनें आज की बटतें परिवार की मार्मिक चित्रण किया हैं आपने।।।
वेद प्रकाश राय जी कोटि कोटि धन्यवाद……… यूँही प्रेम बनाये रखें!
wah bahut khub surendr ji…………..kamal kar diya aapne…….
मनिंदर जी अत्यंत आभार आपका!
अतीव उत्कृष्ट …… …… भावपूर्ण बेहतरीन मुक्तक …… बधाई आपको सुरेन्द्र भाई
हर घर परिवार की सच्ची दास्तान ………………………………… बेहद लाजवाब सुरेन्द्र जी !!
सर्वजीत जी प्रतिक्रिया के लिए कोटिश धन्यवाद
सुरेंदरजी जी बहुत खूबसूरती से आज की सोच जिसने इंसानों को स्वारथी बना दिया है उसका चित्रण किया है ,बधाई हो
किरन जी, आपकी इस प्रतिक्रिया से हमे और कुछ लिखने की शक्ति मिलेगी!
भारतीय समाज का यथार्थ से परिपूर्ण पारिवारिक रेखाचित्र प्रस्तुत किया मूलत: सभी को प्रभावित करता है !!
अति सुन्दर रचनात्मकता !!
निवातियाँ जजी आपकी स्नेह के लिए कोटि कोटि धन्यवाद