बड़ी-बड़ी बूंदें बारिश की, बादल भी है फट रहे ।
कट रहा नदिया किनारा, घर-द्वार सब बह रहे ।
अचानक उठा सैलाब पलक झपकते निगल गया,
अभी खड़े पिकनिक मनाते अब अचानक बह रहे ।
ढह गए पर्वत, रहा न बचा अब उनका शिखर,
जो कभी झुकते नहीं थे, आज वो ही मिट रहे ।
पुल टूटे, सड़कें भी बह गईं, बची नहीं कोई राह,
जलमग्न हुआ शहर-गाँव, विपदा सब सह रहे ।
बुनियाद सफलता की रख, गर्व किया करते थे,
हश्र सफलता का देख, उन्हीं के आंसू बह रहे ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
bahut khub vijay ji kudart ne jo kehar dhaya hai woh insaan ki galtiyo ke karan hai hame abhi se kuch na kuch karna hoga warna iska natiza aur bhi bhayank ho sakta hai
सिलेंडर में छमता से ज्यादा गैस हो जाने पर सिलेंडर फट जाता है. हमने प्रकृति का भी जरुरत से ज्यादा दोहन कर लिया है जिसका भुगतान तो हमें करना ही होगा. जब जागो तब सवेरा. सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रकृति के आगे सब बौने है. सटीक चित्रण विजय
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर.
वाहहह सुविचार बहुत सुन्दर
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
अत्यंत ही सजीवता के साथ प्रकृति के तांडव को आपने कलमबद्ध किया है। सत्य है की उसके आगे किसका बस!
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत खूब विजय जी l
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.”आतंक का हमला” भी पढ़ें.
यथार्थ को परिभाषित करती…बहुत खूबसूरत…..जब हम अपनी कर्त्तव्य भूल जाएंगे तो पृकीर्ति तो भरपाई करेगी ही….और उसके आगे सब कुछ गौण…..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर.
प्राकृतिक आपदा का सामना करना असम्भव है …………………………. हमेशां खुदा के कहर से डर के रहना चाहिए …………………… बहुत ही बढ़िया विजय जी !!
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर.
प्राकृतिक आपदाओं पर इंसानों का कोई ज़ोर नहीं ,आपने अपनी कवता में बड़ा अच्छा चित्र खिंचा है
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.