गरीबों की गरिमा को कानून की चौखट पर बेबसी से बिकते देखा है हमने,
अमीरों के आँगन में ईमानदारी को निलाम होते देखा है हमने,
देश के अन्नदाता को कर्ज के “कहर” से “जहर” के घूँट पीते देखा है हमने,
गायों को कत्लखानो में कटते और कुत्तों को महलों में संवारते देखा है हमने।
शहीदों के सम्मान की जगह कोफिनो पे करप्शन करते देखा है हमने,
वीरो की उन विधवाओं को दफ्तरों के चक्कर लगाते देखा है हमने,
मैकोले के मानसपुत्रो के हाथों इतिहास को विकृत करते देखा है हमने,
और आजाद-भगत जैसे क्रांतिवीरों की आतंकियों से तुलना करते देखा है हमने ।
आरक्षण की आगजनी से प्रतिभाओं को जलते देखा है हमने,
भ्रष्टाचार की भीषणता से कौशल्य को कुचलते देखा है हमने,
दहेज की अंधी प्यास में अपनी पुत्रवधु को जलाते देखा है हमने,
और भुखमरी से बेहाल मजदूर को मजबूरी से मिट्टी खाते देखा है हमने।
अंग्रेज़ियत की इस आँधी में हिंदी को बेबस बेवा बनते देखा है हमने,
पाश्चात्यकरण के इस प्रवाह में अपनी संस्कृति की शर्म को देखा है हमने,
मानवता के मंत्र देने वालो को साम्प्रदायिकता के शूली पे चड़ते देखा है हमने,
और अपने आराध्य श्रीराम को तंबु में तड़पते देखा है हमने ।
जूनून के उस जज़्बात से झेलम को लाल होते देखा है हमने,
धर्म की धर्मान्धता में इंसान को हैवान बनते देखा है हमने,
कश्मीर में काफिरों के नाम से पंडितो को कटते देखा है हमने,
औरतों की अस्मिता को नंगे बदन लटकते देखा है हमने ।
सत्ता के उन दलालों के हाथों सीमाओं को बेंचते देखा है हमने,
राजनीती के इस रण में लाशों को सीढ़िया बनाते देखा है हमने,
संसद के उन सदनों में शालीनता का नंगा नाच देखा है हमने,
और खादी पहनने वालो के हाथों गांधी को बिकते देखा है हमने ।
– निसर्ग भट्ट
सचाई हैं बिल्कुल
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिये, धन्यवाद
Satyaparak…..steek…..
bilkul sateek kaha nisarg bhai.. bahut khoob.
true lines…………!
nice write ………………………..
धन्यवाद, मधुकरजी
Nice expression………………………..
Mere Bhai Bilkul sahi likha hai tumne??