हर तरफ ही चीख है यह कैसा उपवन हुआ ।
कल तक तो शहर था आज वहशी वन हुआ ।
किसी के रोके नहीं रुकती दहाड़ें आज तो,
जिन्दा बचे उनका ही पहले मरने सा मन हुआ ।
हर तरफ कोलाहल और मची रही अफरा-तफरी,
एक बार फिर सरे बाज़ार घायल अमन हुआ ।
खुद की फिक्र छोड़कर कोशिशें पुरजोर कीं,
पर बाल जीवन का चाहकर न जतन हुआ ।
शव ही शव बिखरे पड़े, लहू से थे तर-बतर,
कौन जाने कब-कहाँ, मौत का आगमन हुआ ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
दिल को छू जाने वाली रचना हैं ये आपकी,,,बिल्कुल सच्चाई झलक रहा हैं।
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
Bahut marmik sahi chitran…..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
sahi kaha sir……………….
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
वहशीपन का सही चित्रण किया है आपने …………………………….. बहुत बढ़िया विजय जी !!
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर…………..
आज कल के दौर में इंसानियत खत्म होती नज़र आती है .भगवन ऐसे लोगों को सादबुद्धि दे .आपने शब्दों में Bahut अच्छा चित्रण किया. है .बधाई होविजय जी
सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
nice composition………….!
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत ही वास्तविक और ह्रदयविदारक चित्रण
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर…………..