दो-चार वक़्त की रोटी कमाने को
चला था मैं दुनिया, सर पर उठाने को |
कितना अंजान था मैं इस हकितत से
आराम छोड़, जाता हू आराम कमाने को ||
ऐ किस्मत, अब तो मेरा हिसाब कर दे
कुछ भी, ना रहा बाकी, अब तो इंसाफ कर दे |
बचपना ही था मेरा, जो तुझे बदलने चला था
मान गया मैं तुझको, हो सके तो माफ़ कर दे ||
बहुत खूब…………..!
Thanks Surendra Ji…