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हे पथिंक हो गया आराम
हौसलों की उड़ान अभी बाकी है
मिली नहीं है वो मजिंल
जीत की मुस्कान अभी बाकी हैं
हे गहरा काला अंधेरा
चांदनी रात अभी बाकी है
गुम मत हो अपनी खुशियों में
मां की वो आस अभी बाकी है
मत खेल शांत पडा समुंद्र
मंजर तूफान अभी बाकी है
बित गया वो सुनहरा कल
लिख “अभी” इतिहास अभी बाकी है
@:-अभिषेक शर्मा’अभी’
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अभिषेक बहुत उम्दा रचना
हार्दिक आभार शिशिर जी सादर नमन
बहुत ही बेहतरीन रचना अभिषेक जी……….
शुक्रिया मनी जी सराहना के लिए
उम्दा रचना अभिषेक…………
लिखों खूब लिखने की प्यास अभी बाकी है
हार्दिक भाई सुरेन्द्र सादर नमन बिल्कुल जी
बेहतरीन रचना……………………………….आपके रचना में निखर आता जा रहा है. बहुत खूब………………….
हार्दिक आभार विजय जी सादर नमन
bahut achha sir ji
शुक्रिया जी…………
बहुत सुन्दर
शुक्रिया वेद जी
अभिषेकजी…..लाजवाब….शुरू से अंत तक…अंत से फिर शुरू तक….कमाल…वाह….
हार्दिक आभार बब्बू जी रचना पसंद करने शुक्रिया सादर नमन
वाह क्या बात है ………………………. बहुत ही बढ़िया अभिषेक ………………………. जबरदस्त !!
बहुत सुन्दर अभिषेक जी.
खूबरसूरत रचना अभिषेक जी !
जोश से भरी बहुत सुन्दर रचना