वक़्त जो करता इशारे, इशारे मिल ही जाते ।
कोई आता नदिया किनारे इशारे मिल ही जाते ।
बाग़ के फूलों को देखो खूब खिले है आज,
कोई भंवरा गुंजन करता इशारे मिल ही जाते ।
आज सावन की फुहारें गिर रही मदहोश बन,
कोई बारिश में नहाता इशारे मिल ही जाते ।
आज पवन की उमंग भी लग रही है जोश में,
कोई जो आँचल उडाता इशारे मिल ही जाते ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
wah vijay ji kya khub apke ishare………………………
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
लाजवाब इशारें
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत खूब ……………….
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर…………..
बहूत खूब विजय जी क्या कहने
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
विजय जी, जितनी अच्छी ढंग से आप लिखते है, उतना भावमय यह रचना नहीं हो पाई है। आप यकीनन इसे और बेहतरीन कर सकते है।
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आपका कहना सही है, मैं खुद भी बहुत संतुष्ट नहीं हूँ. लेकिन समय के आभाव में हम ज्यादा कुछ नहीं कर सके. समय मिलाने पर अवश्य सुधर करूँगा और पुनः प्रकाशित करूँगा और आपको सूचित भी करूँगा.
हमें भी बहुत खूबसूरत इशारा हुआ तो हाजिर हो गए….बहुत खूबसूरत…..
सराहना के लिए ह्रदय से आभार सर…………..
बढ़िया ……………………………………… विजय जी !!
वाह विजय जी.. इशारों इशारों से इशारों इशारों को समझ रहे हैं हम. सुन्दर रचना.