रिश्ते भी कमीज सरीखे होते हैं..
कुछ नए..कुछ पुराने..तो कुछ फटे हुए..
नए वाले अच्छे हैं
चमक है उनमें
पार्टी फंक्शन में पहनता हूँ
कुछ रौब भी जम जाता है
सम्हाल कर रखे हैं अलमारी में
पुराने वालों में अब वो चमक नहीं
घर में पहनने के काम आते हैं
गिले शिकवे होते हैं..पर इतनी दिक्क़त नहीं..
एक दो बटन टूट भी जाए तो चलता है
और इस्त्री की उन्हें आदत नहीं
और एक सन्दूक में कुछ फ़टे हुए भी रख्खे हैं..
हाँ सन्दूक में..सन्दूक भी पुराना है..
निकाल लेता हूँ साल में एकहाद बार..
अक्सर होली में क़्योंकि..
कितना भी रंग चड़ा लो इनपर
कोई फर्क नहीं पड़ता
बड़े बेरंग से हो गए हैं..
बस कुछ पल तन ढक लेता हूँ
जब तक वो और नहीं फटते..
पर..
कल दिल बैठ गया था मेरा..
जब तुम बोली कमीज बदलनी है..
नई चाहिए थी तुम्हे…
#सोनित
रिश्तों को कपड़ो के साथ बहुत सुंदर तारतम्य बिठाया है आपने, सच है की जो रिश्ते पुराने हो जाते है उसको उतनी तबज्जो नहीं मिलती, सोनित जी लेखनी की गहराई को सलाम!
बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र जी.
वाह सर कमाल कर दिया आपने…………..बहुत खूब सोनित जी
शुक्रिया मनी जी.
सोनितजी….रिश्तों की आज के समय में अहमियत को आपने बहुत ही सटीक तरीके से अपने बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया….लाजवाब…..
“कल दिल बैठ गया था मेरा..
जब तुम बोली कमीज बदलनी है..
नई चाहिए थी तुम्हे…” …….
दिल को बहुत गहरे छू गयी……लाजवाब…..
बब्बू जी बहुत बहुत आभार.
पुराने रिश्तों की गहराई का अहसास उनके टूटने या ख़त्म होने के डर से ही होता है. बेहतरीन रचना सोनित.
धन्यवाद सर.
रिश्तों की कमीज के साथ शानदार तुलना किया हैं आपने सोनित जी,,,बेहतरीन रचना।
बहुत आभार वेद जी.
गहरे भाव दर्शाती रचना……………बहुत खूब……………..
शुक्रिया विजय जी.
वाहहहह बहुत खूब
शुक्रिया अभिषेक जी.
बेहतरीन ………………………………………. सोनित !!
धन्यवाद सर्वजीत जी.