न जाने क्यूँ सुनसान, प्यार का मयखाना है
अपने ही शहर में हर शख्स लगे बेगाना है!!
पार्टियाँ भी घरों में होती है अकेले अकेले
लोग होटलों को जाते, जब होता खिलाना है!!
नुक्कड़ वहीँ लोग वहीँ पर हर कोई खामोश
चौराहों पर यारों के जमघट का दौर पुराना है!!
त्योहारों के रंग पड़े फीके यारों की तलाश में
होली का हुडदंग देखे गुजरा एक जमाना है!!
लाखों की भीड़ है यहाँ पर हर आदमी अकेला
कंधे नहीं मिलते जनाजा भी अकेले उठाना है!!
पडोसी की भी खबर मिलती है खबरनवीसों से
लोग कैद दीवारों में, किया सीमित ठिकाना है!!
“कुशक्षत्रप” बेबस है बदली बदली सी फिजा में
दिल का दर्द यूँही कागजों पर लिखते जाना है!!
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
बेहतरीन. अकेलेपन का दर्द समेटे खूबसूरत रचना सुरेन्द्र
Shishir Madhukar ji अत्यंत आभार……!
पडोसी की भी खबर मिलती है खबरनवीसों से
लोग कैद दीवारों में, किया सीमित ठिकाना है!!
जीवन को व्यक्तिगत बनाकर जीने की जो अर्थहीन और अंधी मुहीम पिछले तीस वर्षों में चलाई गयी है, उसका बड़ा हर्जाना मानवता को भुगतना पड़ रहा है| इसे बदलने की सख्त जरुरत आज आन पड़ी है| शानदार रचना के लिए साधुवाद| अरुण..
अरुण जी रचना को परिभाषित करने के लिए मै आभारी हूँ!
बहुत खूब सूरत अकेले पन की पीड़ा को बया करती आप की रचना……………..बेहतरीन सुरेन्द्र जी
मनिंदर जी कोटि कोटि आभार…….!
Kya likhoon iss kalam ki zubaan par….. Behtareen……
बब्बू जी आप बिना कुछ लिखे भी बहुत कुछ लिख जाते है, आभार आपका!
“पडोसी की भी खबर मिलती है खबरनवीसों से
लोग कैद दीवारों में, किया सीमित ठिकाना है!!” wah,,wah,,wah,,, bahut sateek likha surendra ji.. behtreen rachna.
सोनित जी , रचना पसंद आई इसके लिए आभारी हूँ!
अति सूंदर रचना…………….दर्द बांटने के लिए हम भी हैं, चिंता मत कीजिये.
विजय जी दिल से धन्यवाद!
bahut achchhi rachna …………aaj k punjivadi dunia ko aaina dikhane k liye dhanywad
आर एन यादव जी प्रेम के लिए आभारी हूँ!
अदभुत रचना सुरेन्द्र जी……
श्रीजा कुमारी जी स्नेहिल प्रेम के लिए आभार!
दुनिया का मेला हर दिल अकेला !!
लाजवाब ………………………… सुरेन्द्र जी ………………………….. लाजवाब !!
सर्वजीत सिंह जी, बहुत खूब, आपकी रोचक प्रतिक्रिया के किये कोटि कोटि आभार!
आपके द्वारा पेश किये गए इस मनोदशां की सराहना करनें हेतु मेरे पास कोई लफ्ज ही नही जिससे आपकी लेखनीं को जोड़ सकूँ।।।।बेहतरीन रचना।
वेद प्रकाश राय जी, रचना आपने पढ़ी और अपनी भावना को मुझतक पहुचाई, इसके लिए आभारी हूँ। आप यूँही प्रेम सुधा बरसातें रहें!
सुरेंदर जी बहुत ठीक कहा अपने ,आज कल लोग अपनेआप में सिमित कर रह. गए. हैं ,आपकी कविता अच्छी लगी …बधाई
किरण गुलाटी जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिलसे आभार!
Bahut achhi Kavita “पडोसी की भी खबर मिलती है खबरनवीसों से
लोग कैद दीवारों में, किया सीमित ठिकाना है!!” ye lines aaj ke city life ka sahi varnan lagta.
अनु महेश्वरी जी रचना पढने और अपने विचार से अवगत कराने हेतु बहुत आभारी हूँ मै! आपका शुक्रिया……!
बहुत खूब !!
शानदार !!
आदरणीय कृपया गज़ल का meter या बहर का नाम देने की कृपा करें l
इससे मुझ जैसे नवोदित कवि या मूर्ख, अनाड़ी को लिखने और समझने में सहायता मिल जायेगी l
शानदार रचना के लिये बधाई !
सादर!!