लोचन उठी तो देखा भव का नजारा
सहम हुआ है अंतरंग हमारा
नीम के तरुवर की छाया है मीठी
विहग के नित्य की उड़ान है मीठी
शैशव के जीवनी की पहचान है मीठी
ये सब मीठे भू-लोक को देखने का अवसर है हमारा
सहम हुआ है अंतरंग हमारा
उत्कर्ष होने लगी निखिल भव मे जब
पसीने की कमाई रंग लाई
उत्कर्ष से हुआ परिवर्तन जब
दुनिया भी मीत रंग लाई
ये सब भू-लोक के रंग को देखने का अवसर है हमारा
सहम हुआ है अंतरंग हमारा
बहुत खूब………एक बार “जन्नत की आग” पढ़ें.
Achhi rachna…………!